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अगम के अनमोल रत्न
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आहार देते समय उसके भाव इतने शुद्ध थे कि उनके प्रभाव से उसने - उसी समय मनुष्य सम्बन्धी आयु का पुण्य बन्ध कर लिया । संसार को संक्षिप्त किया। उस समय उसके घर में देवों ने सुवर्ण की दृष्टि की । पांच वर्ण के फूल और बहुमूल्य वस्त्र बरसाये । देवदुदुभियाँ बज उठीं। आकाश में रहकर देवतागण अहोदान महोदान की घोषणा करने लगे ।
हस्तिनापुर के नगरवासी भी • कहने लगे-सुमुख गाथापति धन्य है, कृतपुण्य है, इसने मनुष्य जन्म को तथा जीवन को सफल कर लिया है ।
हे गौतम ! इस सुमुख गृहपति का पुण्यशाली जीव ही धारिणी देवी के गर्भ में आकर सुबाहुकुमार के रूप में जन्म ग्रहण किया है । उसने पूर्वजन्म में सुपात्र को दान देकर ही यह मनुष्य सम्वधी दिव्यऋद्धि और इष्ट मनोहर एवं सौम्य रूप प्राप्त किया है ।
पुनः गौतम ने भगवान से प्रश्न किया- भगवन् ! यह सुत्राहुकुमार क्या आपके पास दीक्षा ग्रहण करेगा । उत्तर में भगवान ने कहा - अवश्य यह दीक्षा ग्रहण कर देवगति प्राप्त करेगा और देवगति से च्युत होकर वह महाविदेह में सिद्धि प्राप्त करेगा ।
इसके बाद भगवान महावीर ने अपनी शिष्य मण्डली के साथ पुष्पकण्टक प्रधान के कृतवनमाल नामक यक्षायतन से विहार कर अन्य देश में भ्रमण करना आरम्भ कर दिया ।
अव सुवाहुकुमार भी भगवान के द्वारा प्रतिपादित जीवादि तत्वों का जानकर हो गया । वह अष्टमी, चतुर्दशी, अमावस्या, पूर्णिमा आदि तिथियों में पौषत्र करता हुआ अधिक से अधिक भरने जीवन को संयमी बनाने लगा |
एक समय पौषध व्रत में रात्रि के समय धार्मिक जागरण करता हुआ सोचने लगा-धन्य है वे ग्राम, नगर, देश और सन्निवेश आदि स्थान जहाँ पर श्रमण महावीर स्वामी का विचरण होता है । वे राजा, महाराजा और सेठ साहूकार भी बड़े पुण्यशाली है जो श्रमण महावीर के पास मुण्डित होकर दीक्षा ग्रहण करते हैं और उनके चरणों