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आगम के अनमोल रत्न rammmmmmmmmmmm पर्युपासना करते हैं। यदि भगवान मेरे पर अनुग्रह कर वीतिभय के मृगबन उद्यान में पधारें तो में भी उनकी वन्दना-पर्युपासना और सेवा करके भाग्यशाली बनें।
उस समय भगवान चंपा नगरी के पूर्णभद्र उद्यान में विराजमान थे। उन्होंने उदायण के मनोगत भावों को जान लिया और वीतिभय की ओर विहार कर दिया । ग्रामानुग्राम विचरण करते हुए भगवान वीतिभय के मृगवन उद्यान में पधारे ।
भगवान महावीर का आगमन सुन उदायन भगवान के दर्शन के लिये गया। भगवान का उपदेश सुन इसने भगवान के पास प्रज्या लेने की इच्छा प्रगट की । भगवान के दर्शन से वापस लौटते समय इसे मार्ग में विचार आया- " मै अपने प्रियपुत्र को राज्यारूढ़ कर प्रबजित होना चाहता हूँ परन्तु वह राज्यारूढ़ हो जाने पर मनुष्य सम्बन्धी भनेक कामभोगों में लुब्ध होगा परिणाम स्वरूप अनेक भवों तक ससार सागर में भटकता रहेगा ।" यह विचार कर उसने पुत्र को राज्यारुद न कर अपने भानेज केशि को राज्यगद्दी पर वैठाकर आप स्वयं प्रवजित होगया ।।
यह अभीतिकुमार को अच्छा नहीं लगा । उसने वीतिभय को छोड़ दिया और चम्पा के राजा कोणिक के पास आ रहने लगा। वहाँ उसे सभी सुख वैभव प्राप्त हुए । यह कुछ समय के बाद श्रमणोपासक होगया किन्तु पिता के प्रति वैर भावना होने से वह मरकर असुरकुमार देव बना।
एक समय उदायणमुनि भगवान की आज्ञा लेकर वीतिभय नगर भाये। केशी को लगा-" उदायणमुनि मुझ से पुन. राज्य प्राप्त करने को आशा से आये हैं यह सोच उसने सारे नगर निवासियों को उदायणमुनि को आश्रय न देने को आज्ञा दी । उदायण मुनि के पूर्व भक्त एक कुम्भकार ने अपनी शाला में उन्हे आश्रय दिया। केशि ने
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