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आगम के अनमोल रत्न
कुछ व्यक्ति धूमते-घूमते नन्दी वृक्ष के पास पहुँचे । उसके सुन्दर व अच्छी सुगन्धवाले फलों को देखकर एक दूसरे से कहने लगेये फल कितने अच्छे है । इतने सुन्दर व मधुर फल प्राण हरण करने वाले भी हो सकते हैं ? उनको श्रेष्ठी की बात पर विश्वास नहीं हुआ । वे वृक्ष के नीचे पहुँचे। उसको शीतल छाया का स्पर्शानुभव कर बड़े आनन्दित हुए । उन्होंने उन फलों को तोड़कर चखा तो वे बड़े सुस्वादु लगे । उन्होंने जी भर कर फलों को खाया और उसकी शीतल छाया में सो गये । थोड़ी देर के बाद उनः फलों का तथा नन्दी वृक्ष की छाया का उनके शरीर पर असर होने लगा । धीरे-धीरे उनके शरीर में जहर व्याप्त हो गया। वे जहर के कारण छटपटाने लगे । अन्ततः उनकी वहीं मृत्यु हो गई।
जिन व्यक्तियों ने श्रेष्ठी की बात पर विश्वास कर फल नहीं खाया वे सुख पूर्वक अटवी को पारकर श्रेष्टी के साथ अहिच्छत्रा पहुंचे। अलिच्छत्रा पहुँचने के बाद धन्य श्रेष्ठी अपने साथियों के साथ वहाँ के शासक कनककेतु राजा के पास पहुँचा और उसने बहुमूल्य उपहार राजा को भेंट किया । राजा ने चंगा निवासियों का सम्मान किया और उनकी जकात माफ कर दी।
इसके बाद धन्यसार्थवाह ने व उनके साथियों ने व्यापार किया और बहुत धन कमाया कुछ दिन रह कर धन्यसार्थवाह ने अहिच्छत्रा से दूसरा माल खरीदा । अन्य व्यापारियों ने भी माल सामान खरीद किया और अपने वाहनों में उसे भर दिया । धन्यसार्थवाह अपने काफिले के साथ चंगा के लिये रवाना हुभा । वह चलते हुए चम्पा पहुँच गया और आनन्द पूर्वक अपने मित्र ज्ञाति जनों के साथ रहने लगा।
___ एक बार स्थविरों का आगमन हुमा । धन्य सार्थवाह उन्हे वन्दना करने के लिये निकला । धर्म देशना सुनकर और ज्येष्ठपुत्र को अपने कुटुम्ब में स्थापित कर दीक्षित होगया । सामायिक से लेकर