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आगम के अनमोल रत्न
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माता के नेत्र को शीतल करता है। मै कितनी पुण्यहीना हूँ | कितनी मन्दभाग्या हूँ कि मेरे एक भी पुत्र नहीं है। यह अपार धन राशि भौर सुन्दर महल पुत्र के अभाव में किस काम के है । अतः प्रातः काल होते ही मै पति की आज्ञा लेकर नाग, भूत, यक्ष के देवालय में जाकर उनकी पूजा करूँगी और उनसे पुत्र की याचना करूँगी।"
प्रातः काल होते ही भद्रा ने स्नान किया । सुन्दर वस्त्राभूषण पहनकर पति की आज्ञा ले पूजन की सामग्री सहित अनेक सौभाग्य. शालिनी स्त्रियों के साथ नगर के बाहर पुष्करिणी वावड़ी के किनारे पहुँची । वहाँ पुष्प की मालाएँ और अलंकार रख दिये । उसके बाद वह पुष्करणी में उतरी और स्नान किया । गीले वस्त्र को पहने हुए उसने कमल पुष्पों को ग्रहण किया और वैश्रमणगृह में प्रवेश किया । वहाँ नाग प्रतिमा को प्रगाम कर भक्ति पूर्वक उसका पूजन किया। धूप दीप करने के बाद नाग देवता से विनय पूर्वक कहने लगी
"अगर मै पुत्र या पुत्री को जन्म दूंगी तो मैं तुम्हारी पूजा कलंगी और भक्षय निधि की वृद्धि करूंगी।" इस प्रकार मनौती कर वह वैश्रमणगृह से निकली और अपने साथ आई हुई वहनों के साथ भोजन किया और अपने घर आगई। इस प्रकार वह चतुर्दशी, अष्टमी, अमावस्या और पूर्णिमा के दिन उत्तम भोजन तैयार करतो और सौभाग्यवती बहनों के साथ नाग भादि देवताओं का पूजन करती और लौट आती । भद्रा सार्थवाही का अब यही क्रम चलने लगा।
___ संतोष और सेवा का फल कभी व्यर्थ नहीं जाता । आखिर देवी देवताओं की अनेक मनौती के बाद भद्रा ने गर्भ धारण किया। गर्भ के तीसरे मास में उसे नाग देवताओं का पूजन करने का दोहद उत्पन्न हुआ और उसे पति को भाज्ञा प्राप्त कर पूर्ण किया। यथासमय उसे पुत्र का जन्म हुभा । पुत्र प्राप्त कर भद्रा - बड़ी प्रसन हुई । उसके घर बड़ी खुशियों मनाई गई। शिशु के जातकर्म