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आगम के अनमोल रत्न
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उस नगर
धन्य नाम का सार्थवाह रहता था । वह समृद्धिशाली था । तेजस्वी था और उसके घर बहुतसा भोजन तैयार होता था । उसकी भद्रा नाम की पत्नी थी । उसके अंग उपाङ्ग अत्यन्त सुन्दर थे । उसका मुख चन्द्रमा के समान सौम्य था । देखने में वह बड़ी आकर्षक लगती थी । अतुल धन सम्पत्ति होते हुए भी उसके कोई सन्तान न थी, जिससे वह अत्यन्त दुःखी थी ।
उस धन्यसार्थवाह का पंथक नामक दास चेटक ( दासी पुत्र ) था। वह सर्वाङ्ग - सुन्दर था । शरीर से पुष्ट था और बालकों को खिलाने में कुशल था ।
वह धन्यसार्थवाह राजगृह नगर का मान्य श्रेष्ठी था तथा अठारह श्रेणियों (जातियों) और प्रश्रेणियों (उपजातियों) का सलाह.
कार था ।
इस नगर में विजय नाम का चोर था । वह अत्यन्त क्रूर था । क्रूरता के कारण उसकी आंखें सदा लाल रहती थीं। उसका चेहरा बड़ा बीभत्स लगता था । उसके दिल में अनुकम्पा के लिये कोई स्थान नहीं था । वह जुआ, शराब, परस्त्री, एवं जीवहिंसा भादि दुर्व्यसनों में सदा रचा पचा रहता था। वह दिन में छिपा रहता था और रात्रि में चोरी करता था । वह चोरी करने में अत्यन्त कुशल था । घोर और जघन्य कृत्य करने वाला निष्ठुर हृदय वह चोर अनेक अत्याचार और अनर्थ करने में जरा भी संकोच नहीं करता था । वह सर्प के समान वक्रदृष्टि वाला और द्रव्य हरण में तलवार की धार के समान तेज था । वह राजगृह के अनेक गुप्त मार्गों को जानता था । टूटे फूटे मकान पर्वत की गुफाएँ व सघन वन उसके निवास स्थान थे ।
एक रात्रि में धन्ना सार्थवाह की पत्नी भद्रा के मन में विचारआय - "वह माता धन्य है जिसकी गोद में सुन्दर बालक किलकारी करता है, क्रीड़ा करता है और अपने निर्विकार बाल सुलभ हाव भाव से