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आगम के अनमोल रत्न
वती । वह सचमुच ही यथा नाम तथा गुणवाली थी। रानी पुष्प-- वती ने एक रात्रि में दावानल से डरकर भाते हुए दन्ती (हाथी) का स्वप्न देखा । वह गर्भवती हुई । यथा समय रानी ने एक पुत्री को जन्म दिया । स्वप्न दर्शन के अनुसार बालिका का नाम दवदन्ती रक्खा । लाइ प्यार से माता पिता उसे दमयन्ती कहने लगे । दमयन्ती राजा की एक मात्र संतान थी जिससे उसका पालन-पोषण बड़े लाइ चाव से हुभा था । दमयन्ती रूप और सौन्दर्य में अनुपम थी।' उसका स्वभाव अत्यन्त विनम्र था और बुद्धि भी तीन थी। उसने योड़े ही समय में स्त्री की चौंसठ कलाएँ सीख ली थी।
दमयन्ती का विवाह उसकी प्रकृति, रूप, गुण आदि के भनु-- रूप वर के साथ हो , ऐसा सोचकर राजा भीम ने स्वयंवर द्वारा उसका विवाह करने का निश्चय किया । विविध देशों के राजाओं के पास आमन्त्रण भेजे । निश्चित तिथि पर अनेक राजा और राजकुमार स्वयंवर मण्डप में एकत्रित हो गये । कोशल देश (अयोध्या) का राजा निषध भी अपने पुत्र नल और कुबेर के साथ वहाँ आया ।
दमयन्ती के स्वयंवर के कारण राज सभा में बड़ी चहल पहल थी। विदर्भ के राजा भीम की राजकन्या दमयन्ती अपने हाथो में वरमाला लेकर स्वयंवर में घूम रही थी । दासी ने आगे बढ़ते हुए. कहा- राजकुमारी ! ये कुसुमायुध के पुत्र महाराजा मुकुटेश है । अपनी वीरता के लिए बहुत अधिक प्रसिद्ध है । दमयन्ती ने मुस्कुराकर देखा तो महाराजा मुकुटेश का सीना फूल उठा । पर दूसरे ही क्षण दमयन्ती वहां से आगे बढ़ गई । यह जयवेशरी राजा के पुत्र चन्द्रराज हैं । यह धरणेन्द्र राजा के पुत्र एवं चम्पा के स्वामी भोगवंशी सुवाह राजा हैं। दमयन्ती मुस्कुराती हुई आगे बढ़ती गई । पुन दासी ने कहा--देवी! यह सुसुमारपुर के स्वामी दधिपर्ण हैं। इस प्रकार वह बंग, मरुधर, कच्छ, द्रविड आदि अनेक देशों के अनेक महाराजाओं, राजकुमारों के सन्मुख होती हुई वरावर भागे बढ़ती गई । आगे अयोध्या