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आगम के अनमोल रत्न
के राजा निषध के बड़े पुत्र नल बैठे हुए थे । दमयन्ती उसके पास आकर खड़ी हो गई । दासी ने परिचय देते हुए कहा-राजकुमारी ! ये महाराज निषध के जेष्ठ पुत्र नल हैं । ये अपने बल और पराक्रम में अद्वितीय हैं । दमयन्ती ने दर्पण में पड़नेवाले उनके शरीर का प्रतिबिम्ब देखा । रूप और गुण में नल अद्वितीय था । दमयन्ती ने उसे सर्व प्रकार से अपने योग्य वर समझा । नत मस्तक होकर लजीली आँखों से मुस्कुराते हुए अपनी वरमाला नल के गले में डाल दी । अन्य राजा गण देखते ही रह गये । जिस वरमाला के लिये अनेकों राजागण आश लगाये बैठे हुए थे अब वह नल के गले में पड़कर उनकी वन चुकी थी। दमयन्ती के योग्य चुनाव की सभी राजाओं ने मुक्त कण्ठ से प्रशंसा की । राजा भीम ने अपनी पुत्री का विवाह बड़ी 'धूमधाम से किया तथा दहेज में हाथी, घोड़े, रथ, दास, दासी, -सोना, चांदी, मणि, मुक्ता, वस्त्र, आभूषण भादि के रूप में बहुत सारा द्रव्य दिया।
राजा निषध नव वर वधू के साथ आनन्द' पूर्वक अपनी राजधानी अयोध्या में पहुँच गये । पुत्र के विवाह की खुशी में राजा निषध ने गरीबों को दान दिया और कैदियों को मुक्त किया । अपनी वार्धक्य अवस्था देखकर महाराज निषध को संसार से विरक्ति हो गई। अपने जेष्ठ पुत्र नल को राज्य का भार सौंप कर उन्होंने दीक्षा अंगीकार कर ली । मुनि बन कर वे कठोर तपस्या करते हुए आत्म कल्याण करने लगे।
नल राजा वना और न्याय पूर्वक राज्य करने लगा। इन्होंने थोड़े समय में ही राज्य की सीमा का विशेष विस्तार किया । बड़े बड़े देशों को जीतकर उन देशों के राजाओं को अपना अनुचर बना लिया। प्रजा में संतोष था । वह प्रजा को पुत्रवत् प्यार करता था। दमयन्ती का भी स्त्री समाज पर अच्छा प्रभाव था । अपने ऊँचे विचार व विनम्र स्वभाव के कारण स्त्री समाज में उसका ऊँचा मान था । नल