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'पद्मावती आदि कृष्ण की आठ पटरानियाँ
पद्मावती द्वारिका नाम की नगरी थी। वहाँ कृष्ण वासुदेव राज्य करते थे। उनकी रानी का नाम पद्मावती था। वह अत्यन्त सुकुमार और सुरूप थी।
' उस समय में भगवान अरिष्टनेमि तीर्थङ्कर परम्परा से विचरते. हुए वहाँ पधारे। भगवान का आगमन सुनकर कृष्ण वासुदेव उनके दर्शन के लिये गये और पर्युपासना करने लगे। भगवान का आगमन सुन कर पद्मावती रानी भी अत्यन्त प्रसन्न हुई। वह धार्मिक रथ पर चढ़ कर भगवान के दर्शन करने के लिये गई। भगवान अरिष्टनेमि ने कृष्ण वासुदेव तथा पद्मावती रानी को लक्ष्य कर परिषद् को धर्मकथा कही। धर्मकथा सुनकर परिषद् अपने अपने घर लौट गई। . पद्मावती रानी भगवान अरिटनेमि के पास धर्म सुनकर और उसे अपने हृदय में धारण कर संतुष्ट और भावपूर्ण हृदय से भगवान को नमस्कार कर बोली-हे भगवन् ! निर्ग्रन्थ प्रवचन पर मेरी श्रद्धा है। आपका उपदेश यथार्थ है, जैसा आप फरमाते हैं वह तत्त्व वैसा ही है। इसलिये मै कृष्ण वासुदेव को पूछकर आपके पास दीक्षा लेना चाहती हूँ। भगवान ने कहा-हे देवानुप्रिये ! जिस प्रकार तुम्हारी आत्मा को सुख हो, वैसा करो किन्तु. धर्मकार्य में प्रमाद न करो।. .
भगवान को वन्दन कर पद्मावती रानी धार्मिक रथ पर बैठी और अपने महल चली आई। वहाँ से वह, कृष्ण वासुदेव के पास गई और हाथ जोड़कर विनम्र शब्दों में बोली-प्राणनाथ ! मैं भगवान भरिष्टनेमि के पास दीक्षा अंगीकार करना चाहती हूँ इसलिये आप मुझे दीक्षा लेने की आज्ञा प्रदान करें। पद्मावती के दृढ़ वैराग्य भाव को देखकर कृष्ण वासुदेव ने कहा-हे देवानुप्रिये ! जिस प्रकार तुम्हें सुखा हो वैसा कार्य करो।