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आगम के अनमोल रत्न
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लगे 'भर्जुनमाली अपनी पत्नी के साथ यहाँ भा रहा है इसलिए हमलोगों को उचित है कि इस अर्जुनमालाकार को, दोनों हाथों को पीछे बलपूर्वक बाँधकर, लुढ़का दिया जाय । वस ये लोग चुपचाप जाकर मंदिर के किवाड़ों के पीछे छिप गये और जव अर्जुनमाली और उसकी औरत यक्ष की पूजा कर रहे थे, चुपके से किवाड़ों के पीछे से निकले और अर्जुनमाली को रस्सी से बांधकर उसकी स्त्री के साथ अपनी भोग-लिप्सा शान्त करने लगे।
अर्जुनमाली बंधन में जकड़ा पड़ा था। वह सोचने लगा-मैं बचपन से ही इस यक्ष की पूजा करता भा रहा हूँ। इसकी पूजा करने के बाद ही आजीविका के लिये राजमार्ग पर फूल बेचने के लिये जाता हूँ और फूल बेचकर निर्वाह करता हूँ। वह यक्ष की भर्त्सना करते हुए बोल उठा-क्या जीवन भर तेरी पूजा करने का यही फल मिला । तू यक्ष है या केवल लकड़ी का ही ढूंठ है । अर्जुनमाली के रोष भरे शब्दों को सुनकर यक्ष आयन्त क्रुद्ध हुआ उसने अर्जुनमाली के शरीर में प्रवेश किया और तडातड़ बन्धनों को तोड़ डाला। उसके बाद यक्ष से भाविष्ट अर्जुननाली ने एक हजार पलवाला लोहे का मुद्गर उठाया और उसने सब से पहले टोली के छः गुण्डों को और अपनी स्त्री वंधुमती को मार डाला । अब वह नियमित रूप से प्रतिदिन छ: पुरुष और एक स्त्री को मारने लगा। लगातार ५ महीने और १३ दिनों तक भर्जुनमाली का यही क्रम रहा। इस बीच उसने ९७८ पुरुष एवं १६३ स्त्रियों को यों कुल ११४१ मनुष्यों की हत्या कर दी। वह अपने आप में बेभान था। हिंसा करना उसका नित्य कर्म बन गया ।
नगर भर में यह बात सब जगह फैल गई कि भर्जुनमाली यक्ष से आविष्ट होकर प्रतिदिन सात व्याकयों की हत्या करता है । यह बात राजा श्रेणिक के पास पहुंची । राजा ने अपने सेवकों द्वारा सारे नगर में घोषणा करवाई कि अर्जुनमाली यक्ष से आविष्ट होकर लोगों की हत्या कर रहा है अतः कोई भी व्यकि लकड़ी, घास, पानी, फल एवं फूल भादि लेने के लिए नगर के बाहर न जाये ।