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आगमके अनमोल रत्न mm पूछा-भगवान् ! आप कहां ठहरे हैं ? उत्तर में इन्द्रभूति ने ; कहामेरे धर्माचार्य धमर्पोशदेक भगवान महावीर पोलासपुर नगर के बाहर श्रीवन में ठहरे हैं। वहीं पर मै भी ठहरा हूँ। इस पर अतिमुक्तक ने कहा- भगवन् ! मै भी भगवान के पादवन्दन के लिए आपके साथ आना चहता हूँ। अतिमुक्तक कुमार गौतमस्वामी के साथ भगवान के दर्शनार्थ श्रीवन उद्यान में पहुँचा । भगवान ने उसे उपदेश दिया। भगवान के धर्मोपदेश से प्रभावित होकर उसने अपने माता पिता से पूछकर दीक्षा लेने का निश्चय भगवान के सामने प्रकट किया।
वहाँ से लौट कर अतिमुक्तक कुमार घर माया और उसने अपने माता पिता से अपना निश्चय प्रकट किया । इस पर उसके माता पिता ने कहा-पुत्र ! तुम अभी बच्चे हो । तुम धर्म के सम्बन्ध में क्या जानते हो ? इस पर अतिमुक्तक ने कहा-"मैं जो जानता हूँ, उसे मैं नहीं जानता और जिसे मैं नहीं जानता उसे मै जाना हूँ।" इस पर उसके माता-पिता ने पूछा---पुत्र ! "तुम यह कैसे कहते हो कि जो तुम जानते हो, उसे नहीं जानते और तुम जिसे नहीं आनते उसे तुम जाने हो ?" माता पिता के प्रश्न पर अतिमुक्तक ने जवाब दिया"मैं जानता हूं कि जिसका जन्म होता है वह अवश्य हो भरता है। पर वह कैसे कब और कितने समय बाद मरेगा, यह मैं नहीं जानता । मैं यह नहीं जानता कि किन आधारभूत कर्मों से जीव. नरक, तिर्यञ्च, मनुष्य अथवा देवयोनि में उत्पन्न होते हैं पर मैं जानता हूँ कि अपने ही कर्मों से जोव इन गतियों को प्राप्त होता है। इस प्रकार मैं सही सही नहीं बता सकता कि मै क्या जानता हूँ और मैं क्या नहीं जानता हूँ । उसे मै जानना चाहता हूँ इसलिए गृह त्याग करना चाहता हूँ और इसके लिए आपकी अनुमति चाहता है।"
पुत्र की ऐसी प्रबल इच्छा देख कर माता पिता ने कहा- पर हम कम से कम एक दिन के लिए अपने पुत्र को राजसिंहासन पर बैठा देखना चाहते हैं।"