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अगम के अनमोल रत्न
भोजन आदि की भी व्यवस्था की जावेगी । इस घोषणा को सुनकर सैकड़ों चम्पा निवासी व्यक्ति अपने-अपने वाहनों में माल सामान भर कर धन्य के पास आ पहुँचे । धन्य ने भी भग्नी गाड़ीगाड़ों में कई प्रकार की अलभ्य कीमती उपयोगी चीजें भरीं और शुभ मुहूर्त में अपने साथी व्यापारियों के साथ अहिच्छत्रा के लिये चल पड़ा।
वह अपने विशाल काफिले के साथ अंग देश की सीमा पर पहुँचा । वहाँ पहुँच कर उसने गाड़ी-गाड़े खोले । पड़ाव डाला । फिर अपने नौकर को बुलाकर धन्य सार्थवाह ने कहा-देवानुप्रियो ! तुम लोग सारे काफिले में ऊँचे ऊँचे शब्दों में यह घोषणा करो कि आगे आनेवाली अटवी में मनुष्यों का आवागमन नहीं होता और वह बहुत लम्बी है । उस अटवी के बीच नन्दीफल नाम के वृक्ष हैं । वे दिखने में बड़े सुन्दर व सुहावने हैं। उसके पत्र, पुष्प, फल बड़े मनोहर व आकर्षक हैं । उनकी छाया अत्यन्त शीतल है किन्तु जो -उस वृक्ष के फलों को खायगा उसके फूलों को सूंघेगा या उसकी शीतल छाया में विश्राम करेगा उसकी थोड़ी देर के बाद निश्चित मृत्यु होगी । यद्यपि वे फल खाने में मीठे लगेंगे, उसके फूलों की मोहक सुगन्ध मन को अच्छी लगेगी और उसकी शोतल छाया भी सुखमय लगेगी किन्तु थोड़ी देर के बाद उसका विष सारे शरीर में फैल जायगा और वह मर जायगा । अतः कोई भी उस नन्दी वृक्ष के पास न जाये। इस प्रकार की घोषणा सेठ के नोकरों ने सारे काफिले में बार-बार की।
कुछ समय तक अग देश की सीमा पर सेठ ने विश्राम किया उसके बाद श्रेष्ठी ने गाड़ी गाड़े जुतवाये और अपने काफिले के साथ विशाल भटवी प्रदेश में प्रवेश किया । उस अटवी में स्थान स्थान पर नन्दी वृक्ष अपनी विशालकाय पंक्ति में खड़े थे। वे अपने आकर्षक रुप से पथिकों को आकर्षित कर रहे थे। श्रेष्ठी ने कुछ भार्ग तय करने के बाद भटवी में नन्दी वृक्ष से कुछ दूरी पर अपना पड़ाव डाला और वहीं विश्राम किया ।