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आगम के अनमोल रत्न
अभय नामक कुमार था । अभय कुमार श्रेणिक का मंत्री था । विकट से विकट समस्या को भी अभय अपनी विलक्षण बुद्धि से सहज ही सुलझा देता था । अभय कुमार विनीत, विनम्र और शिष्ट था। वह राजा को अत्यन्त प्रिय था। कोई भी राज्य का काम विना अभय की अनुमति के नहीं हो पाता था । अभय बुद्धिमान था, भक्तिवान था और व्यवहार में मधुर तथा चतुर भी था। प्रजाजन भी अभय को प्रेम भरी दृष्टि से देखते थे।
श्रेणिक राजा की दूसरी रानी का नाम धारिणीदेवी था । धारिणी अत्यन्त रूपवती थी और राजा का उसपर अत्यन्त प्रेम था। एक समय धारिणी अपने उत्तम भवन में शय्या पर सो रही थी। अर्द्ध रात्रि के समय अर्द्ध जागृत अवस्था में उसने एक उत्तम रवप्न देखा । अपने स्वप्न में उसने सात हाथ ऊँचा रजतकूट के सदृश वेत सौम्य लीला करते हुए जभाई लेते हुए हाथो को आकाशतल से अपने मुख में भाते देखा । देखकर वह जाग उठी । अपनी शय्या से उठकर वह राजा के पास पहुंची और उसने अपने स्वप्न का वृत्तांत कह सुनाया । राजा रानी का स्वप्न सुनकर वहा हर्षित हुआ और बोला-हे देवानुप्रिये ! तुमने उदार-प्रधान स्वप्न देखा है । इस स्वप्न को देखने से तुम्हें अर्थ की, राज्य की, सुख की एवं पुत्र की प्राप्ति होगी। तुम एक कुलदीपक पुत्र रत्न को जन्म दोगी। राजा के मुख से स्वप्न का फल सुनकर वह अत्यन्त हर्षित हुई और राजा को नमस्कार कर अपनी शय्या पर चली आई। वहीं यह उत्तम स्वप्न अन्य अशुभ स्वप्नों से नष्ट न हो जाय यह सोच वह देवगुरु एवं धर्म सम्बन्धी प्रशस्त धार्मिक कथाओं द्वारा अपने शुभ स्वप्न की रक्षा परने के लिये जागरण करने लगी।
दूपरे दिन प्रातःकाल स्वप्नपाठकों को बुलाकर राजाने स्वप्न का अर्थ पूछा । उन्होने बतलाया कि यह स्वप्न बहुत शुभ है । रानी की कुक्षि से किसी पुण्यशाली प्रतापी बालक का जन्म होगा। यह सुनकर राजाने स्वप्न पाठकों को प्रीतदान दिया और उन्हें सम्मान पूर्वक विदा किया ।