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आगम के अनमोल रत्न
करने का उपाय सोच रहा हूँ। वह बोला-पिताजी आप चिन्ता मत कीजिये । मैं शीघ्र ही ऐसा प्रयत्न करूँगा जिससे मेरी लघु माता का दोहद पूरा होगा।
__ अपने स्थान पर आकर अभय कुमार ने विचार किया कि अकाल में मेघ का दोहद देवता की सहायता के विना पूरा नहीं हो सकता । ऐसा विचार कर अभयकुमार पौषधशाला में आ, अट्ठमतप स्वीकार करके अपने पूर्वभव के मित्र देव का स्मरण करने लगा। तीसरे दिन अभय कुमार का पूर्वभव का मित्र सौधर्मकल्पवासी एक देव उसके सामने प्रकट हुआ और अभय कुमार से बोला—देवानुप्रिय ! मैं तुम्हारा पूर्वभव का मित्र सौधर्मकल्पवासी देव हूँ। वताओ मैं तुम्हारी क्या सेवा वर सकता हूँ? देव को अपने समक्ष उपस्थित देख उसने पौषध व्रत को परिपूर्ण क्यिा और दोनों हाथ जोड़कर बोला-देव ! मेरी छोटी माता धारिणी के भकाल मेघ के दोहद को पूर्ण कर मुझे अनुगृहीत करी । इस पर देव बोला-देवानुप्रिय ! तुम निश्चित रहो मैं तुम्हारी लघुमाता धारिणी देवी के दोहद वी पूर्ति किये देता हूँ। ऐसा कहकर वह अभय कुमार के पास से निकला और उसने अपनी उत्कृष्ट वैक्रिय शक्ति से वर्षा ऋतु का दृष्य उपस्थित किया। आकाश में मेघ छा गये। विजली और गरजना के साथ वादलों से बूंदे पड़ने लगी। सर्वत्र हरियाली छा गई और मयूर प्रसन्न होकर नाचते हुए मुक्त कण्ठ से केकारव करने लगे।
वर्षा ऋतु का रमणीय दृष्य देखकर महारानी धारिणी पुलकित हो उठी उसने स्नान क्यिा और सोलह शृङ्गार किये । सुन्दर वस्त्राभूषों से सज्जित हो वह महाराजा श्रेणिक के साथ गंधहस्ति पर आरूढ़ हुई और दास दासी और अपने सगे परिजनों से घिरी हुई चतुरंगी सेना के साथ वैभारगिरि की तलेहटी में वर्षा ऋतु का मनोहर दृष्य देखती हुई अपने दोहद को पूर्ण करने लगी। इस प्रकार दोहद के पूर्ण होने पर रानी बड़ी प्रसन्न हुई और अपने गर्भ का परिपालन करने लगी।