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भागम के अनमोल रत्न
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से भक्षण करने आ पहुँचा हो । प्रीष्म काल के सूर्य के प्रचण्डताप से व दावानल की उष्णता से नदियों तालावों व निर्झरों का जल सूख गया था । सर्वत्र पशु पक्षियों के सबे हुए मृत देह ही दिखाई देते थे।
___ इस अवसर पर हे मेघ ! तुम्हारा (अर्थात् समेरुप्रभ हाथी का) मुखविवर फट गया । तुम दावनल से घबरा उठे ।
इस भयकर दावानल से परित्राण पाने के लिये तुम्हारा सारा. परिवार इधर उधर भागने लगा। तुम अपने यूथ से अलग पड़ गये। तृषा के कारण तुम्हारा मुखविवर फट गया । जिह्वा बाहर निकल आई। सूंड सिकुड़ गई । हाथियों की भयंकर चीत्कार से भाकाश प्रदेश गूंज उठा और उनके पाद प्रहार से पृथ्वी कॉप उठी ।
हे मेघ ! तुम वहाँ जीर्ण जरा जर्जरित देहवाले व्याकुल भूखे, दुर्बल थके मांदे एवं दिग्विमूढ़ होकर अपने यूथ से बिछुड़ गये। इसी समय अल्पजल और कीचड़ की अधिकता वाला एक बड़ा सरोवर तुम्हें दिखाई दिया । उसमें पानी पीने के लिये तुम बेखटके उतर गये। वहाँ तुम किनारे से दूर चले गये, परन्तु पानी तक न पहुंच पाये
और वीच ही में कीचड में फंस गये। तुमने पानी पीने के लिए दूर तक फैलाई किन्तु पानी तक तुम्हारी सुंड नहीं पहुंच पाई और तुम अधिक कीचड़ में फँस गये। अनेक प्रयत्न किये लेकिन तुम कोचड़' से अपने आप को नहीं निकाल सके।
किसी समय तुमने एक हाथी को मारकर अपने यूथ से निकाल दिया था वह पानी पीने के लिये उसी सरोवर में उतरा। तुम्हें देख कर वह अत्यन्त क्रुद्ध हुआ और भयंकर भावेश में आकर दंत प्रहारों से तुम्हें बींधने लगा। तुम्हें अर्ध मृतक कर वह भाग गया। उस समय तुम्हारे शरीर में भयंकर वेदना उत्पन्न हुई सात दिन तक दाह