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मागम के अनमोल रत्न
नौ मास के पूर्ण होने पर महारानी धारिणी ने अत्यन्त रूपवान सर्व इन्द्रिय संपन्न एक पुत्ररत्न को जन्म दिया । दासिभों द्वारा पुत्र जन्म की सूचना पा कर महाराजा श्रेणिक बढ़े प्रसन्न हुए। उसने पुत्र जन्म की खुशाली में बहुत से बन्दीजनों को मुक्त किया
और बहुत सा दान दिया । गर्भावस्था में रानी को मेघ का दोहद उत्पन्न हुभा था इसलिए बालक का नाम मेघकुमार रखा गया ।
योग्य वय होने पर मेघकुमार को पुरुष की ७२ कलाभों की शिक्षा दी गई । युवावस्था के प्राप्त होने पर मेघकुमार का विवाह सुन्दर सुशील और स्त्री की ६४ कलाओं में प्रवीण आठ राजकन्याओं के साथ किया गया ।
एक समय भगवान महावीर स्वामी राजगृह नगर के बाहर गुणशील नाम के उद्यान में पधारे। भगवान का आगमन सुनकर नगर के हजारों जन दर्शन और अमृतवाणी का महालाभ लेने आने लगे । महा. राजा श्रेणिक ने भी भगवान के दर्शन किये । नगर का विशाल जन समूह भगवान के दर्शन के लिये उमड़ता देख मेघकुमार की भी मोह निद्रा भङ्ग हुई। वह भी परमप्रभु के पावन चरणों में पहुँच गया । भगवान ने मेघकुमार को उपदेश दिया । उपदेश सुन कर मेघकुमार को संसार से वैराग्य उत्पन्न हो गया । जो संसार अभी तक मधुर और सुखद लगता था वह अव खारा और दुखद् लगने लगा। मनहर महल मेधकुमार के लिए कारागृह हो गये । प्राणप्रिया वनिताएँ पैर की बेडी बन गई । मेघकुमार के आध्यात्मिक जागरण ने एक झटके में इन सब बन्धनों को तोड कर दूर फेंक दिया। अब यदि कोई बन्धन शेष था तो जन्म देने वाली माता की सहज ममता थी। मनुष्य सब कुछ छोड़ सकता है किन्तु जन्म देने वाली माता की ममता को छोड़ना सहज नहीं किन्तु धीरे धीरे अनुनय विनय से माता पिता की ममता पर भी विजय प्राप्त कर ली । मेधकुमार के तीव्र वैराग्य भाव को देखकर माता पिता ने उसे दीक्षा ग्रहण करने