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आगम के अनमोल रत्न
की भाज्ञा प्रदान कर दी। महाराजा श्रेणिक ने उसका राज्याभिषेक किया और सहस्रवाहिणी शिविका पर बैठाकर अत्यन्त उत्सव पूर्वक उसे महावीर के पावन चरणों में उपस्थित किया । ।
___ भगवान महावीर के चरणों में उपस्थित हो कर मेघकुमार ने विनीत भाव से कहना प्रारंभ किया
भन्ते ! यह संसार विषय कषाय की आग से जल रहा है। घर में आग लग जाने पर गृह स्वामी जैसे बहमूल्य वस्तु को लेकर बाहर निकल आता है वैसे ही मै भी अपनी प्रिय वस्तु आत्मा को जरा मरण से प्रज्वलित इस संसार रूप गृह से निकाल लेने की भावना से प्रबजित होना चाहता हूँ अतएव आप स्वयं ही मुझे प्रवजित करें, मुण्डित करें और ज्ञानादिक आचार, गोचरी, विनय, वैनयिक चरणसत्तरी, करणसत्तरी, संयम यात्रा और मात्रा आदि रूप धर्म का प्ररूपण करें।
मेघकुमार की माता धारिणी ने अश्रुपूर्ण नेत्रों से भगवान की ओर देखते हुए विनम्र भाव से निवेदन किया
भन्ते । यह मेघकुमार मेरा पुत्र है। मुझे अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय है । कान्त है, इष्ट है। जिस प्रकार कमल कीचड़ में पैदा हो कर भी कीचड़ और जल से अभिलिप्त नहीं होता, उसी प्रकार यह मेरा मेघ भी काम-भोगमय जीवन व्यतीत करके अब काम भोगों से निर्लिप्त होने की भावना रखता है । भन्ते ! मैं आपको यह शिष्य भिक्षा दे रही हूँ। स्वीकार कर मुझे कृतार्थ कीजिए । मेरी प्रार्थना अंगीकार कीजिए ।
तत्पश्चात् भगवान महावीर ने मेघकुमार को स्वयं ही प्रव्रज्या प्रदान की और आचार की शिक्षा देते हुए कहा-मेघ ! आज से तुम्हें यतना पूर्वक चलना, बैठना, खड़ा होना, बोलना, सोना और भोजनादि क्रियाएँ करनी चाहिये । संयम के परिपालन में एक क्षण का भी प्रमाद नहीं करना चाहिये और सभी प्राण, भूत जीव और