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आगम के अनमोल रत्न
एक वैद्य की सहायता से उदायण मुनि को आहार में जहर दे दिया । जब उदायण मुनि को आहार में जहर खा जाने का पता लगा तो उन्होंने यावज्जीवन का संथारा ले लिया । समाधि पूर्वक रहने कारण उन्हे केवलज्ञान होगया और वे मोक्ष में गये। भगवान महावीर के शासन के ये अन्तिम मुकुटबद्ध राजा प्रवजित हुए थे। इनके बाद कोई मुकुटबद्ध राजा दीक्षित नहीं हुआ।
___ उदायणमुनि के देहोत्सर्ग के बाद देवों ने वीतिभय को एक कुम्भकार के घर को छोड़ कर सारे नगर को धूल धूसरित कर दिया। वह स्थान बाद में कुम्भकाराकड नगर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
गंगदत्त अनगार ____ हस्तिनापुर नामक एक प्रसिद्ध नगर था उसके बाहर ईशान कोण में सहस्रबन नाम का उद्यान था। वहाँ गंगदत्त नाम का गाथापति रहता था। वह ऋद्धि सम्पन्न भा । एक बार हस्तिनापुर के सहस्त्र वन में तीर्थकर भगवान मुनिसुव्रत स्वामी पधारे । भगवान के आगमन की सूचना पाकर गंगदत्त गाथापति भगवान के दर्शन के लिये गया। भगवान का उपदेश सुन गंगदत्त गाथापति को वैराग्य उत्पन्न हो गया । उसने अपने पुत्र को घर का भार सौंप दिया और महत् ऋद्धि के साथ वह भगवान के पास प्रबजित हो गया । दीक्षा लेकर गंगदत्त मुनि ने ग्यारह अंग सूत्रों का अध्ययन किया । सूत्रों का ज्ञाता बनने के बाद कठोर तप कर अन्तिम समय में एक मास का संधारा किया। समाधि पूर्वक मर कर वह सातवें देवलोक में महद्धिक देव बना ।
देव बनने के बाद गंगदत्त देव जब भगवान महावीर उल्लुकातीर नाम के नगर में विराजमान थे तब उनके दर्शन के लिये आया भौर वत्तीस प्रकार के नाटक दिखाकर अपना भकि भाव प्रकट किया। इसके बाद गंगदत्तदेव ने भगवान से पूछा-भगवन् ! मै भवसिद्धिक हूँ या अभवसिद्धिक ? भगवान ने उत्तर दिया-गंगदत्त ? तू भव्यसि