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વર
आगम के अनमोल रत्न
एक दिन पूर्णभद्र उद्यान में भगवान महावीर स्वामी पधारे । महाचन्द्रकुमार ने उनसे श्रावक के बारह व्रत - स्वीकार किये । गौतम स्वामी ने महाचन्द्र कुमार का पूर्वभव पूछा । उत्तर में भगवान ने फरमाया कि-चिकित्सिका नाम की नगरी थी । महाराज जितशत्रु वहाँ का राजा था । उसने धर्मवीर्य भनगार को प्रतिलाभिन किया । जिससे उसे मानव भव, सुख, समृद्धि, रूप तथा लावण्य आदि प्राप्त हुए ।
उसने भगवान के आगमन पर उनसे दीक्षा ग्रहण की । अंगसूत्रों का अध्ययन किया। तप किया और सम्पूर्ण कर्मों का क्षय कर मोक्ष में गया ।
वरदत्त कुमार साकेत नाम का नगर था । वहाँ उत्तरकुरु नाम का उद्यान था । उसमें पाशामृग नाम के यक्ष का यक्षायतन था । साकेत नगर में मित्रनन्दी नाम के राजा राज्य करते थे । उसकी रानी का नाम श्रीकान्ता और पुत्र का नाम वरदत्त था। वरदत्तकुमार का वरसेना आदि प्रमुख ५०० राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ था।
किसी समय उत्तरकुरु उद्यान में भगवान महावीर का भागमन हुआ । वरदत्त ने भगवान की वाणी सुनकर उनसे श्रावक धर्म प्रहण किया । गौतमस्वामी के पूछने पर भगवान महावीर वरदत्तकुमार के पूर्व भव का वर्णन करते हुए कहने लगे कि हे गौतम ! शतद्वार नाम का नगर था । उसमें विमलवाहन नाम का राजा राज्य करता था । उसने धर्मरुचि अनगार को आहार दान दिया था जिससे मनुष्य की आयु उसने वांधी । वहाँ की भव स्थिति को पूर्णकर वह इसी साकेत नगर के महाराजा मित्रनन्दी की रानी श्रीकान्ता के उदर से वरदत्त के रूप में उत्तन्न हुआ ।
एक बार पौषधशाला में धर्मव्यान करते हुए उसने भगवान के पुनः नगर में आगमन के वाद प्रवज्या लेने का निश्चय किया । भग