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आगम के अनमोल रत्न
(१) बलन्मरण-तड़फते हुए मरना । (२) वशात-मरण-पराधीनतापूर्वक मरना । (३) अन्तशल्य-मरण-शरीर में शस्त्रादि जाने से अथवा सन्मार्ग से
पथभ्रष्ट होकर मरना । (४) तद्भवमरण-जिस गति में मरे फिर उसी में आयुष्य बांधना। (५) गिरिपतन-पहाड़ से गिरकर मरना ।। (६) तरुपतन-वृक्ष मादि से गिरकर मरना । (७) जलप्रवेश-पानी में डूबकर मरना । (८) ज्वलनप्रवेश-मरण-अग्नि में गिर कर मरना। (९) विषभक्षण-मरण-जहर आदि प्राण घातक पदार्थ खाकर मरना। (१०) शस्त्रावपाटनमरण-छुरी, तलवार आदि शस्त्र द्वारा होने वाला
मरण । (११) वैहाणस-मरण-फांसी लगाकर मरना । (१२) गृद्धपृष्ट-मरण-गिद्ध आदि पक्षियों द्वारा खाया जाने पर होने वाला मरण ।
हे स्कन्धक ! इन बारह प्रकार के वालमरण से मरने वाले जीव का संसार बढ़ता है और वह बहुत काल तक नरक तियं चादि योनियों में परिभ्रमण करता है।
है स्कंधक ! पंडितमरण दो प्रकार का है-प्रयम प्रायोपगमन और दूसरा भक्तप्रत्याख्यान । प्रायोपगमन के दो भेद हैं-निहारिम-जो संथारा प्राम नगर आदि वस्ती में किया जाय, जिससे मृत कलेवर को ग्रामादि से बाहर ले जाकर अग्निदाहादि संस्कार करना पड़े और उसका उलटा भनिर्हारिम पादोपगमन है । इन दोनों प्रकार का पादोपगमन प्रतिकर्म रहित है। इन दो मरण से मरणवाला जीव का संसार परिभ्रम" अल्प हो जाता है । इसी प्रकार भक्तप्रत्याख्यान मरण भी दो प्रकार का है--एक निहारिम और दूसरा भनि रिम । इन दोनों प्रकारों का भक्तप्रत्याख्यान भरण प्रतिकर्मवाला है। इन मरणों से मरण पाले जीवों का भी ससार भ्रमण अल्प हो जाता है।