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आगम के अनमोल रत्न
चाहता हूँ। भगवान ने कहा-जैसा सुख । उसके बाद ऋषभदत्त ने समस्त वस्त्रालंकार उतार कर भगवान के पास दीक्षा ले ली । भगवान ने उसे श्रमणसंघ में प्रविष्ट कर लिया । स्थविरों के पास रह कर ऋषभदत्त मुनि ने ग्यारह अगसूत्रों का अध्ययन किया और अन्त में मासिक संलेखना कर निर्वाण प्राप्त किया ।
देवानन्दा ने भी आर्या चन्दना के पास प्रव्रज्या ग्रहण की और कठोर तप से कर्मों का क्षय कर निर्वाण प्राप्त किया ।
महाबल और सुदर्शन हस्तिनापुर के बल राजा के पुत्र महाबल थे । इसकी माता का नाम प्रभावती था। इसका आठ राजकन्याओं के साथ विवाह हुभा था । इसने विमल अर्हत् की परम्परा के आचार्य धर्मघोष के पास प्रत्रज्या ग्रहण को और चौदह पूर्व का अध्ययन किया । बारह वर्ष तक संयम का पालन किया । अन्त में एक मास का संथारा कर देह का त्याग किया और मर कर ब्रह्मदेवलोक में महर्द्धिक देव बना । वहाँ से दस सागरोपम की आयु पूरी कर वाणिज्यग्राम में सुदर्शन श्रेष्ठी बना ।'
एक बार भगवान महावीर वाणिज्यग्राम में पधारे । भगवान का आगमन सुनकर जन समुदाय भगवान का दर्शन करने चला । सुदर्शन श्रेष्ठी भी सुन्दर वस्त्राभूषणों से सज्जित हो पांव पांव द्विपलास उद्यान की ओर चला । भगवान के पास पहुँच कर वन्दना की और परिषद् के चली जाने पर उसने विनय पूर्वक पूछा- . .
भगवन् ! काल क्तिने प्रकार है ?
भगवान ने उत्तर दिया-सुदर्शन ! काल के चार प्रकार हैं। प्रमाणकाल, यथायुनिवृतिकाल, मरणकाल और अद्धाकाल । भगवान ने वारों कालों की विषद व्याख्या करते हुए उसके पूर्वजन्म का वृत्तान्तः सुनाया । (जो ऊपर भा गया है।)