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आगम के अनमोल रत्न
भगवान के वचन सुनकर स्कन्धक परिव्राजक को वोध होगण। उसने भगवान से विशिष्ट धर्मोपदेश सुनने की इच्छा प्रस्ट की। भगवान ने विशाल परिषद् के समक्ष स्कन्धक को धर्मोपदेश सुनाया। भगवान का धर्मोपदेश सुनकर स्कन्धक ने परिव्राजक वेश का परित्याग कर दिया और महावीर से पंच महाव्रतरूप धर्म को स्वीकार कर अनगार बन गया ।
अनगार बनने के बाद स्कन्धक मुनि भगवान के द्वारा उपदिष्ट मार्ग पर चलने लगे । इन्होंने स्थविरों के पास रहकर ग्यारह अंगसूत्रों का अध्ययन किया । बारह वर्ष तक मुनिधर्म का पालन कर स्कन्धक ने बारह भिक्षु प्रतिमा और गुणरत्न संवत्सर आदि विविध तप किये । अन्त में विपुलाचल पर्वत पर जाकर समाधि पूर्वक एक मास का अनशन करके देह छोड़ अच्युतकल्म में देवत्व प्राप्त किया। स्कन्धक देव की आयु वाईस सागरोपम की हुई । ___ स्कन्धक मुनि के देवत्व प्राप्त करने के बाद गौतमस्वामी ने भगवान से पूछा-भगवन् ! स्कन्धक देव अपनी देव आयु पूर्ण करने । के बाद कहाँ उत्पन्न होगा ? __भगवान ने कहा-गौतम ! स्कन्धक देव, देवायु को पूर्णकर महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और वहाँ सिद्धत्व प्राप्त करेगा । जन्म जरा और मरण के बन्धनों से सदा के लिये छूट जायगा ।
ऋषभदत्त और देवानन्दा ऋषभदत्त ब्राह्मणकुण्ड के प्रतिष्ठित कोडाल गोत्रीय ब्राह्मण थे। इनकी धर्मपत्नी देवानन्दा जालंधर गोत्रीया ब्राह्मणी थी। ऋषभदत्त और देवानन्दा ब्राह्मण होते हुए भी जीव, अजीव, पुण्य, पाप आदि तत्त्वों के ज्ञाता श्रमणोपासक थे । बहुसाल उद्यान में भगवान महावीर का आगमन सुनकर ऋषभदत्त बहुत खुश हुए। यह खुशखबरी देवानन्दा को सुनाते हुए वे वोले-देवानुप्रिये ! सर्वज्ञ भगवान महावीर स्वामी आज अपने नगर के बहुसाल उद्यान में पधारे हैं। ऐसे ज्ञानी और तपस्वी भर्हन्तों का नाम श्रवण भी फलदायक होता है तो सामने