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आगम के अनमोल रत्न
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भगवान के मुख से पूर्वजन्म का वृत्तान्त सुन उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो गया । उसने भगवान के पास प्रवज्या ग्रहण की । बारह वर्ष तक संयम का पालन कर अन्त में सिद्धि प्राप्त की ।
शिवराजर्षि हस्तिनापुर नगर में शिव नाम के राजा थे। उनकी रानी का नाम धारिणी था और पुत्र का नाम शिवभद्र ।
एक दिन राजा के मन में रात्रि के पिछले प्रहर में विचार हुआ कि हमारे पास जो इतना सारा धन है वह हमारे पूर्वजन्म के पुण्य का ही फल है । अतः पुनः पुण्य संचय करना चाहिये । इस विचार से उसने दूसरे दिन अपने पुत्र का राज्याभिषेक कर दिया
और अपने सगे सम्बन्धियों से पूछकर गङ्गा के किनारे दिशाप्रोक्षक तापस हो गया और छठ-छठ की तपस्या करने लगा। तापसी विधि के अनुसार दिग्चक्रवाल तप करने से शिवराजर्षि के आवरण-- भूत कर्म नष्ट हो गये और विभंगज्ञान उत्पन्न हो गया। उससे शिवराजर्षि को इस लोक में ७ द्वीप और सात समुद्र दिखलायी पर। अपने ज्ञान को पूर्ण ज्ञान समझकर वह यह प्ररूपणा करने लगा कि 'संसार में सात द्वीप और सात समुद्र हैं इसके आगे कुछ नहीं है।
यह वात हस्तिनापुर में फैल गई ।
उसी समय भगवान महावीर का वहाँ आगमन हुआ। उनके शिष्य गौतम स्वामी ने भिक्षाचर्या के समय शिवराजर्षि की यह वात सुनी । आहार से लौटने पर उन्होंने भगवान महावीर से पूछाभगवन् । शिवराजर्षि कहता है कि सातद्वीप और सात समुद्र ही है। यह बात कैसे सम्भव है ?
उत्तर में भगवान ने कहा-गौतम ? यह वात भसत्य है । इस तियगलोक में स्वयभरमण समुद्र पर्यन्त असंख्य द्वीप और समुद्र