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आगम के अनमोल रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm उन राजकन्याओं के साथ उन्नत प्रासादों में रहकर यथेष्ट भोगोपभोग करता हुआ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा।
एक समय ऋषभपुर में भगवान महावीर का पधारना हुआ । मगर की जनता भगवान के दर्शन करने उद्यान में गई । महाराजा धनावह व राजकुमार भद्रनन्दी भी भगवान के दर्शनार्थ गये । भग-वान ने धर्म श्रवणार्थ आई हुई परिषद् को धर्म सुनाया । भगवान की वाणी सुनकर भद्रनन्दी कुमार ने श्रावक के बारह व्रत स्वीकार किये। भद्रनन्दी के घर जाने के बाद उसके रूप, लावण्य, गुण, संात्ति आदि की प्रशंसा करते हुए गौतम स्वामी ने उसके पूर्व भव के सम्बन्ध में पूछा कि हे भगवन् ! भद्रनन्दी पूर्वभव में कौन था तथा किस, पुण्य के आचरण से इसने इस प्रकार की मानवी गुण समृद्धि प्राप्त की है। इस प्रश्न के उत्तर में भगवान ने कहा-गौतम ! तुम्हारे प्रश्न के समा. धान में मैं इस कुमार का पूर्वजन्म का वृत्तांत सुनाता हूँ
महाविदेह में पुण्डरिकिनी नाम की एक सुप्रसिद्ध नगरी थी। वहाँ के शासक के पुत्र का नाम विजयकुमार था । एक बार उस नगरी में युगबाहु नाम के तीर्थकर भगवान पधारे । विजयकुमार ने बड़ी विशुद्ध भावना से उन्हें भाहार दिया । आहार का दान करने से उसने उसी समय मनुष्य की आयु का वन्ध किया । वहाँ की भव स्थिति पूरी करने के बाद उस सुपात्र दान के प्रभाव से वह यहां आकर भद्रनन्दी के रूप में अवतरित हुआ । हे गौतम । भद्रनन्दी को इस समय जो मानवी ऋद्धि प्राप्त हुई है, वह विशुद्ध भावों से किये गये उसी आहार दान रूप पुण्याचरण का विशिष्ट फल है। इसके बाद गौतम स्वामी ने पुनः प्रश्न किया-भगवन् ! भद्रनन्दी कुमार आपके पास दीक्षा ग्रहण करेगा ? उत्तर में भगवान ने फरमाया-हाँ गौतम ! लेगा । उसके बाद श्रमण भगवान महावीर ने अन्यत्र विहार कर दिया ।
एक दिन भद्रनन्दी पौषधशाला में जाकर पौषध व्रत करता है । वहीं तेले की तपस्या से आत्म चिन्तन करते हुए भद्रनन्दी को