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आगम के अनमोल रत्न
में उपस्थित होकर पंचाणुव्रतिक गृहस्थ धर्म को अंगीकार करते हैं, वे भी धन्य है । उनके धर्म को श्रवण करने वाले भी भाग्यशाली हैं। यदि अबकी बार भगवान यहाँ पधारेगे तो मै भी उनके पावन चरणों: में उपस्थित होकर संयम व्रत को अंगीकार करूँगा । ___भगवान सर्वज्ञ और सर्वदर्शी थे। वे भक्त सुबाहुकुमार के भाव को जान गये । भगवान भक्त के अधीन होते हैं । इसी उक्ति के अनुसार. सुवाहुकुमार के उद्धार की इच्छा से भगवान ने हस्तिशीर्ष नगर की ओर प्रस्थान कर दिया । ग्रामानुग्राम विचरते हुए भगवान हस्तिशीर्ष नगर में पधारे और पुष्पकरण्डक उद्यान में कृतवनमालप्रिय यक्ष के मन्दिर में विराजमान हो गये । तदन्तर उद्यानपाल के द्वारा भगवान के पधारने की सूचना मिलते ही नगर निवासी जनता भगवान के दर्शन के लिए बड़ी संख्या में उद्यान में गई । इधर नगर नरेश भी सुवाहु. कुमार को साथ लेकर बड़े समारोह के साथ उद्यान में उपस्थित हुए, और भगवान की वाणी सुनी । ____ भगवान को वाणी सुनकर सुबाहुकुमार का मन वैराग्य के रंग से रंग गया । उसने अपने पूर्व विचारों को साकार करने का निश्चय किया । वह भगवान के सन्मुख खड़ा होकर बोला-भगवन् ! मैंने आपसे पहले श्रावक के बारह व्रत ग्रहण किये थे कारण कि उस समय मैं मुनिव्रत ग्रहण करने में असमर्थ था किन्तु इस समय मै मुनिव्रत के योग्य अपने आपको मानता हूँ। मैं अपने माता पिता को पूछकर आपके पास दीक्षा ग्रहण करना चाहता हूँ। भगवान ने उत्तर में कहा-जैसे तुम्हें सुख हो वैसा करो। ___ उसके बाद सुबाहुकुमार घर आया और उसने माता पिता से स्वीकृति प्राप्त करने में सफलता प्राप्त करली । सुबाहुकुमार ने श्रमण भगवान महावीर के समीप साधुधर्म ग्रहण कर लिया। अब सुबाहु अनगार स्थविरों के पास रहकर अंगसूत्रों का अध्ययन करने लगे।