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आगम के अनमोल रत्न
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___ उस समय भगवान महावीर का नगरी में पदापर्ण हुआ। भगवान की वाणी सुनकर जिनदास कुमार ने श्रावक के बारह व्रत स्वीकार किये जिनदास के पूर्वजन्म वृत्तान्त बताते हुए भगवान महावीर ने कहा--मेघरथ नाम का राजा था। इसकी राजधानी का नाम माध्यमिका था। एक दिन उसने सुधर्मा नाम के एक तपस्वी अनगार को अत्यन्त उत्कृष्ट भाव से आहार दिया । इसी आहार दान से इसने मनुष्य की आयु वान्धी। भरकर यह इसी सौगन्धिका नगरी में जिनदास के रूप में उत्पन्न हुआ।
किसी समय नीलाशोक उद्यान में भगवान का पुनः आगमन हुआ। जनता के साथ जिनदास कुमार भी धर्म श्रमण के लिए भगवान के पास पहुँचा । धर्म श्रमण कर इसे संसार से उपरति हो गई और उसने प्रवज्या ग्रहण कर ली । प्रवज्या के बाद इसने कठोर तप किया और अन्त में मासिक सलेखना करके उ होने देह का त्याग किया। वे मरकर देवलोक में गये । भविष्य में वे महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेंगे।
धनपति कुमार कनकपुर नाम का नगर था । वहाँ श्वेताशोक नाम का उद्यान था और उसमें वीरभद्र नाम के यक्ष का मन्दिर था। वहाँ प्रियचन्द्र नाम के राजा राज्य करते थे । उसकी रानी का नाम सुभद्रा था । उसका वैश्रमण नाम का युवराज पुत्र था। उसने श्रीदेवी आदि प्रमुख पाँच सौ राजकन्याओं के साथ विवाह किया था। युवराज वैश्रमण कुमार के पुत्र धनपति कुमार ने भगवान महावीर के नगर आगमन के बाद श्रावक के व्रत ग्रहण किये ।।
धनपति कुमार के पूर्वजन्म का वृत्तान्त गौतम स्वामी के पूछने के वाद महावीर भगवान ने बताया कि धनपति कुमार पूर्वजन्म में मणिचयनिका नगरी का राजा मित्र था । उसने संभूतिविजय नाम के मुनिराज को आहार से प्रतिलाभित किया था इसीसे उसे यह दिव्य ऋद्धि और कान्ति मिली है।