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आगम के अनमोल रत्न
लगा। रानी चुलनी का दीर्घपृष्ठ के साथ प्रेम होगया । दोनों ने कुमार ब्रह्मदत्त को प्रेम में बाधक समझकर उसे मार डालने के लिये षड्यंत्र किया । तदनुसार रानी ने एक लाक्षागृह तैयार कराया, कुमार का विवाह किया और दम्पति को सोने के लिये लाक्षागृह में मेजा । कुमार के साथ मंत्रीपुत्र वरधनु भी लाक्षागृह में गया । भद्ध रात्रि के समय दीर्घपृष्ठ और रानी के सेवकों ने लाक्षागृह में आग लगा दी। उसी समय मंत्री द्वारा बनवाई हुई गुप्त सुरंग से ब्रह्मदत्तकुमार और मंत्री वरधनु बाहर निकलकर भाग गये। .
इधर जब दीर्घपृष्ठ को मालूम हुआ कि कुमार ब्रह्मदत्त और वरधनु लाक्षागृह से जीवित निकलकर भाग गये हैं तो उसने चारों तरफ अपने आदमियों को दौड़ाया, किन्तु ब्रह्मदत्त का कहीं पता नहीं लगा।
ब्रह्मदत्त ने वरधनु के साथ अनेक नगरों को जीता और अनेक राजकुमारियों के साथ विवाह किया । छ खण्ड पृथ्वी को जीत करके वापिस काम्पिल्यपुर लौटा । दीर्घपृष्ठ राजा को मारकर वहाँ का राज्य प्राप्त किया । ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की ऋद्धि भोगता हुआ अपना समय सुखपूर्वक व्यतीत करने लगा।
किसी समय ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को नाटक देखते हुए देवलोक के नाटक का स्मरण हो आया। उससे उसको जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न होगया। जाति स्मरण में अपने पूर्व जन्म के भ्राता चित्त को पांच भव तक तो साथ ही में देखा परन्तु छठे भव में वह उसको अपने साथ न देख सका । तब अपने भाई को मिलने के लिये और उसकी खोज के लिये उसने "गोपदासो मृगो हंसा मांतग श्वामरो यथा" -यह पद बनाकर लोगों को सिखला दिया और साथ में यह भी कहा कि जो कोई पुरुष इस श्लोक का उत्तरार्द्ध बनाकर लावेगा उसे आधा राज्य दिया जावेगा । .. इधर चित्तमुनि अवधिज्ञान से अपने पूर्वजन्म के भ्राता ब्रह्मदत्त नकवी को उपदेश देने के लिये उग्र विहार कर काम्पिल्यपुर पधारे और उद्यान में ठहरे ।