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आगम के अनमोल रत्न
गौतम सूर्य के समान जिनेन्द्र महावीर का उदय हो गया
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केशी-दुख रहित स्थान कौन है ? गौतम--लोकान में स्थित निर्वाण ।
केशी-हे गौतम ! आपकी प्रज्ञा अच्छी है । मेरे सन्देह नष्ट हो गये हैं । अतः हे संशयातीत! हे समस्त श्रुत समुद्र के पारगामी | भापको नमस्कार है ।
इस प्रकार शंकाएँ दूर हो जाने पर घोर पराक्रमी केशी श्रमण ने महायशस्वी श्री गौतम स्वामी को सिर झुका कर वन्दना की और पांच महाव्रत धर्म को भाव से ग्रहण किया ।
भगवान महावीर के संघ में प्रवेश कर देगी श्रमण ने कठोर तप कर घनघाती कर्मों का क्षय किया और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये ।
जयघोष और विजयघोष जयघोष और विजयघोष दोनों भाई थे। जाति से ये काश्यप गोत्रीय ब्राह्मण थे और वाराणसी के रहने वाले थे। ये वेद शास्त्रों के पारगामी विद्वान थे और यज्ञ याग भादि ब्राह्मण क्रिया में विशेष श्रद्धा रखते थे।
एक बार जयघोष स्नान करने के लिये गंगा नदी पर गया । वहाँ उन्होंने एक मण्डूक को सौंप से, साप को कुरर (पक्षी विशेष) से असित देख कर उन्हें वैराग्य उत्पन्न हो गया । उन्होने अवसर पाकर एक ज्ञानी श्रमण के पास दीक्षा ले ली । दीक्षा लेकर जयघोष मुनि ने श्रुत का अध्ययन किया और वे गुरु की आज्ञा लेकर एकाकी विचरने लगे।
वे विहार करते-करते वाराणसी नगर के बाहर मनोरम उद्यान में आये और निर्दोष शय्या संस्तारक लेकर रहने लगे।