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आगम के अनमोल रत्न
सुबाहुकुमार सामान्य बालक न रहकर विद्या, विनय, रूप और यौवन सम्पन्न एक आदर्श राजकुमार बन गया तथा मानवोचित भोगों के उपभोग करने के सर्वथा योग्य हो गया । माता पिता ने उसके लिये पांचसौ भव्य प्रासाद और एक विशाल भवन तैयार कराया और पुष्पचूला आदि प्रमुख पां यसौ राजकुमारियों के साथ उसका विवाह कर दिया। दहेग में उसे सुवर्णकोटि आदि प्रत्येक वस्तु ५०० की संख्या में मिली । अब सुभाहुकुमार अपनी ५०० रानियों के साथ मानवोचित विषय भोगों का उपभोग करता हुआ आनन्द पूर्वक रहने लगा।
(क बार श्रमण भगवान महावीर स्वामी अपनी शिष्य मण्डली के साथ हस्तिशर्ष नगर के बाहर पुष्पकरण्डक उद्यान में पधारे । भगवान के आगमन का समाचार सारे नगर में बिजली की तरह फैल गया । नगर की जनता बड़ी संख्या में महावीर के उपदेश श्रवण करने के लिये उनके समवशरण में पहुँचौ । महाराजा भदीनशत्रु भी भगवान के आगमन को सुनकर बड़े प्रसन्न हुए और प्रभुदर्शनार्थ पुष्पकरण्डक उद्यान में आने की तैयारी करने लगे। उन्होंने अपने हस्तिरत्न और चतुरंगिणी सेना को सुसज्जित हो तैयार रहने का आदेश दिया और स्वयं स्नानादि आवश्यक क्रियाओं से निवृत्त हो वस्त्राभूषण पहनकर हस्तिरत्न पर सवार हो महारानी धारिणी देवी को तथा सुबाहुकुमार को साथ ले चतुरंगिणी सेना के साथ बड़ी सजधज से भगवान के दर्शनार्थ उद्यान की ओर चल पड़ें। उद्यान के समीप पहुँच कर जहाँ से भगवान महावीर को देखा वहाँ से ही वे हस्तिरत्न के नीचे उतर गये एवं पांच अभिगमों के साथ वे भगवान के चरणों में उपस्थित होने के लिये पैदल चल पड़े । भगवान के चरणों में उपस्थित होकर. यथाविधि वन्दना नमस्कार करने के बाद वे उचित स्थान पर बैठ गये । भगवान ने अपने सामने उपस्थित महती परिषद् को उपदेशा दिया।