________________
आगम के अनमोल रत्न
५४७
वैठा लिया । सुकुमार शालभद्र को राजा की गोद भी कठोर लगी । वह गोद में बैठे बैठे हो व्याकुल हो गया । अपने पुत्र की इस भवस्था को देख कर भद्रा विनय पूर्वक वोली-"सम्राट् ! आप इसे छोड़ दें। यह सदा से फूलों की कोमल शय्या पर बैठा है । आपकी कठोर जांघ इसे व्याकुल बना रही है । इसे मनुष्य की गन्ध से कष्ट हो रहा है। इसके पिता देवता हो गये हैं और वे अपने पुत्र और पुत्रवधुओं को दिव्यवेश और भोजनादि प्रतिदिन मेजते हैं।" यह सुनकर राजा ने शालिभद्र को विदा किया और वह सातवीं मंजिल पर चला गया ।
शालिभद्र अब दीक्षा लेने की भावना से प्रतिदिन एक पत्नी और एक शय्या का त्याग करने लगा ।
उसी नगर में शालिभद्र की छोटी बहन सुभद्रा का विवाह धनसार श्रेष्ठी व माता शीलवती के पुत्र 'धन्य' के साथ हुआ था । सुभद्रा को अपने भाई शालिभद्र के वैराग्य का समाचार मिला तो वह बहुत दुःखित हुई । उसकी आँखों में आंसू आ गये। उस समय वह अपने पति धन्य को स्नान करा रही थी। धन्य की अन्य सात पत्नियाँ भी स्नान कराने में सम्मलित थीं । सुभद्रा के आंसू पति के शरीर पर गिरने लगे । उप्ण पानी के बिन्दुभो का स्पर्श पाकर धन्य वोला-आज ये उष्ण विन्दु कैसे ? जब उसने ऊँचा देखा तो सुभद्रा के आँखों से अविरल ऑसू बह रहे थे। पत्नी की आँखों में आंसू देखकर धन्य ने पूछा--प्रिये ! तुम क्यों रो रही हो ? उसने जबाब दिया-"नाथ ! मेरा भाई शालिभद्र दीक्षा लेने के विचार से प्रतिदिन एक-एक पत्नी और एक एक शय्या का साग कर रहा है ।" यह सुनकर धन्य ने कहा-"तुम्हारा भाई कायर है। अगर त्याग ही करना है तो यह कायरता क्यों ? इस पर सुभद्रा ने कहा-"यदि दीक्षा लेना सहज है तो आप क्यों नहीं ले लेते ।"
|