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आगम के अनमोल रत्न
'केश-सभी लोग बन्धनों में बन्धे हुए हैं। तब आप इन बन्धों से कैसे छूट गये ?
गौतम-राग द्वेष आदि को चारों तरफ से नष्ट करके मैं स्वतंत्र हो गया हूँ।
केशी-हृदय में एक लता है जिसमें विष फल लगा करते हैं। आपने वह लता कैसे उखाड़ी ?
गौतम-तृष्णा को दूर करके मैंने वह लता नष्ट कर दी है।
केशी-आत्मा में एक तरह की ज्वालाएँ उठा कती है आपने इन्हें कैसे शान्त किया ?
गौतम-ये कषायरूपी ज्वालाएँ हैं । मैंने भगवान महावीर द्वारा वताये गये श्रुत शील और तप रूपी जल से इन्हे शान्त किया है।
केशी-इस दुष्ट घड़े को कैसे वश करते हैं ? गौतम-दुष्ट घेड़ा मन है; उसे धर्म शिक्षा से वश करता हूँ। केशी-लोक में बहुत से कुमार्ग है । आप उनसे कैसे बचते हैं ?
गौतम-मुझे कुमार्ग और सुमार्ग का ज्ञान है, इसलिये मैं उनसे बचा रहता हूँ।
केशी-प्रवाह में बहते हुए प्राणियों का आश्रय स्थान कहाँ
गौतम-पानी में एक द्वीप है। जहाँ प्रवाह नहीं पहुँचता । वह धर्म है।
केशी-यह नौका तो इधर उधर आती है । आप समुद्र पार कैसे करेंगे ?
गौतम-शरीर नौका है जिसमें आश्रव लगे हुए हैं। वह पार न पहुँचायगी, परन्तु आश्रय रहित नौका पार पहुँचायगी। .
केशी-सब प्राणी अँधेरे में टटोल रहे हैं। इस अन्धकार को कौन दूर करेगा?