________________
आगम के अनमोल रत्न mmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmm करते हुए श्वेताम्बिका नगरी के मृगवन उद्यान में ठहरे । उद्याना पालक ने केशीश्रमण के आने की सूचना चित्त सारथी को दी । चित्त केशीश्रमण के पास जाने लगा।
एक दिन चित्त घुड़सवारी के बहाने प्रदेशी राजा को मृगवन उद्यान में ले आया। वहां प्रदेशी ने केशीश्रमण को महती सभा में उपदेश देते हुए देखा और चित्त से बोला--"यह कौन मूर्ख मूों के बीच वकवास कर रहा है ?" चित्त ने कहा-'ये केशीकुमार श्रमण हैं। आत्मा और शरीर को भिन्न भिन्न मानते हैं। प्रदेशी को आत्मा और शरीर का विभिन्नत्व कैसे है यह जानने की जिज्ञासा हुई । वह केशी के पास गया । उसने अनेक प्रश्न किये । केशीश्रमण ने अनेक व्यवहारिक तर्को से आत्मा को शरीर से भिन्न सिद्ध किया। प्रदेशी केशी- . श्रमण का उपासक बन गया । उसने हिंसा त्याग दी। श्रावक के बारह बत ग्रहण किये । अपने राज्य की आय के चार हिस्से किये । एक हिस्से में उसने दानशाला खोली । जिससे अनेक श्रमण ब्राह्मण अतिथि भौर भिक्षुक लाभ उठाने लगे । केशीश्रमण वहाँ से विहार कर गये।
२. द्वितीय केशी श्रमण भगवान पार्श्व की परम्परा को मानने वाले तीन ज्ञान के धारक केशी श्रमण पार्श्व द्वारा उपदेशित चार याम, अहिंसा सत्य, अचौर्य और अपरिग्रहण को मानते थे। वे एक बार अपने पांचसौ शिष्यों के साथ श्रावस्ती आये और तिन्दुक ,उद्यान में ठहरे । उसी समय भगवान महावीर के प्रधान शिष्य द्वादशांग के धारक गौतम स्वामी भी शिष्य मण्डली के साथ श्रावस्ती के कोष्ठक उद्यान में ठहरे थे । एक दूसरे को देखकर दोनों के शिष्यों को यह चिन्ता हुई कि भगवान पावं नाथ ने चातुर्याम धर्म क्यों कहा और महावीर ने पांच महावत और अचेलक धर्म का विधान क्यों किया । शिष्यों के ये विचार जान कर केशी और गौतम ने मिल कर परामर्श कर लेना उचित समझा और