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आगम के अनमोल रत्न के पात्र एवं चीवरों को ग्रहण किया और फिर विपुलगिरि से नीचे उतर आये। भगवान की सेवा में आकर स्थविरों ने आली कुमार के वस्त्र पात्र बताये और उसके स्वर्गवास के समाचार कहे ।
मयालिकुमार राजगृह नाम का नगर था। वहाँ श्रेणिक राजा राज्य करते थे उसकी रानी का नाम धारिणी था । मयालिकुमार, उपजालिकुमार, पुरुषसेनकुमार, वारिषेणकुमार, दीर्घदन्तकुमार और लष्टदन्तकुमार इन छ कुमारों का आठ आठ राजकन्याभों के साथ विवाह हुआ और इन्हें आठ २ दहेज मिले। ये अपने अपने महलों में भोग विलास में रत रहने लगे।
भगवान महावीर का राजगृह में आगमन हुआ। इन छहों कुमारों ने महावीर के दर्शन किये। भगवान के उपदेश से प्रभावित होकर इन राजकुमारों ने भगवान महावीर के समीप चारित्र ग्रहण किया। सोलह वर्ष तक चारित्र का पालन कर इन्होंने विपुलगिरि पर अनशन किया और क्रमशः इन कुमारों ने विजय, वैजयन्त, जयन्त, अपराजित
और सवार्थ सिद्ध विमान में देवत्व प्राप्त किया । दीर्घदन्त कुमार ने सर्वार्थ-. सिद्धविमान प्राप्त किया। ये कुमार देवलोक का आयुष्य पूर्णकर महाविदेह क्षेत्र में सिद्धि प्राप्त करेंगे। दर्घदन्त का दीक्षा पर्याय बारह वर्ष का था।
वेहल्ल और वेहायस ये महारानी चेलना के पुत्र थे। इनके पिता का नाम श्रेणिक था। इन्होंने महावीर के समीर प्रत्रज्या ग्रहण की। पाचवर्ष तक संयम पालन कर उत्क्रम से जयन्त और अपराजित विमान में देवत्व प्राप्त यिा । ये महाविदेह में सिद्ध बनेंगे।
अभयकुमार राजगृह नगर के महाराजा श्रेणिक के ये बुद्धिमान और चतुर पुत्र थे। इनकी माता का नाम नन्दा देवी था। अभयकुमार महाराजा शेणिक