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________________ ५३४ आगम के अनमोल रत्न 'केश-सभी लोग बन्धनों में बन्धे हुए हैं। तब आप इन बन्धों से कैसे छूट गये ? गौतम-राग द्वेष आदि को चारों तरफ से नष्ट करके मैं स्वतंत्र हो गया हूँ। केशी-हृदय में एक लता है जिसमें विष फल लगा करते हैं। आपने वह लता कैसे उखाड़ी ? गौतम-तृष्णा को दूर करके मैंने वह लता नष्ट कर दी है। केशी-आत्मा में एक तरह की ज्वालाएँ उठा कती है आपने इन्हें कैसे शान्त किया ? गौतम-ये कषायरूपी ज्वालाएँ हैं । मैंने भगवान महावीर द्वारा वताये गये श्रुत शील और तप रूपी जल से इन्हे शान्त किया है। केशी-इस दुष्ट घड़े को कैसे वश करते हैं ? गौतम-दुष्ट घेड़ा मन है; उसे धर्म शिक्षा से वश करता हूँ। केशी-लोक में बहुत से कुमार्ग है । आप उनसे कैसे बचते हैं ? गौतम-मुझे कुमार्ग और सुमार्ग का ज्ञान है, इसलिये मैं उनसे बचा रहता हूँ। केशी-प्रवाह में बहते हुए प्राणियों का आश्रय स्थान कहाँ गौतम-पानी में एक द्वीप है। जहाँ प्रवाह नहीं पहुँचता । वह धर्म है। केशी-यह नौका तो इधर उधर आती है । आप समुद्र पार कैसे करेंगे ? गौतम-शरीर नौका है जिसमें आश्रव लगे हुए हैं। वह पार न पहुँचायगी, परन्तु आश्रय रहित नौका पार पहुँचायगी। . केशी-सब प्राणी अँधेरे में टटोल रहे हैं। इस अन्धकार को कौन दूर करेगा?
SR No.010773
Book TitleAgam ke Anmol Ratna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj
PublisherLakshmi Pustak Bhandar Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages805
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size24 MB
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