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आगम के अनमोल रत्ना
में छहों ने अन्तिम समय में संथारा किया और मरकर प्रथम देवलोक के नलिनीगुल्म 'विमान में देवरूप से उत्पन्न हुए ।
गोपालों के जीव को छोड़कर अन्य चार' जीवों में से एक देवलोक से चवकर इषुकार नगर का राजा बना। दूसरा इषुकार राजा की कमलावती नाम की रानी बना। तीसरा भृगु नाम का राजा का पुरोहित बना, और चौथा पुरोहित की पत्नी यशा बना ।
मृगु पुरोहित धनाढ्य थे । उसके पास धन वैभव की कमी नहीं थी किन्तु पुत्र का अभाव दोनों पति पत्नी को खटकता था। पुत्र न होने के कारण दोनों शोकाकुल रहते थे।
इधर दोनों गोपालक देव ने अपनी आयु के केवह छ ही महिने शेष जान और अपने आगे के भव को देख वे जैन मुनि के वेश में भृग पुरोहित के यहाँ आहार के लिये आये। उन्होंने भृगु पुरोहित को उपदेश दिया। सन्तान के विषय में पुरोहित के प्रश्न करने पर उन्होंने कहा कि तुम्हारे दो पुत्र होंगे और वे साधु वृति को धारण करेगे । अतः भाप उनकी दीक्षा में बाधक न बनना किन्तु उन्हें धार्मिक प्रेरणा देते रहना । मुनियों के उपदेश से पुरोहित ने श्रावक के व्रत ग्रहण किये । मुनि वहाँ से चले गये ।
कुछ काल के बाद गोपालक के जीव देवलोक से चवकर यशा के गर्भ में आये । गर्भकाल के पूर्ण होने पर यशा ने दो सुन्दर पुत्रों को जन्म दिया। दोनों बालकों का लाड़ प्यार से लालन पालन होने लगा।
एक दिन 'भृगु पुरोहित ने सोचा, “यदि मैं शहर में रहूँगा तो मेरे दोनों ही पुत्र साधुओं के सम्पर्क में आकर दीक्षित हो जायेंगे । अतः मुझे ऐसे स्थान में जाकर रहना चाहिये जहाँ साधुओं का आवागमन न हो। यह सोच वह जंगल और झाड़ियों से घिरे 'कर्पट' नामक गांव में आया और वहीं मकान बनाकर परिवार के साथ रहने लगा।