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आगम के अनमोल रत्न
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उस समय उद्यान का माली आधा श्लोक गाता हुआ वृक्षों को पानी पिला रहा था। मुनि ने यह श्लोक सुना और उसकी पूर्ति कर दी "एषां पष्टयो जातिरन्यान्य भाव युक्तयोः श्लोक की पूर्ति होने पर माली राजा के पास पहुंचा और उसने अपूर्ण श्लोक को पूरा कर सुनाया। पता लगाने पर मालूम हुआ कि इस लोक को उद्यान में ठहरेहु ए एक मुनि ने पूर्ण किया है। राजा ने माली को इनाम टेकर विदा किया । ब्रह्मदत्त अपने विशाल वैभव के साथ अपने पूर्वजन्म के भ्राता चित मुनि के दर्शन करने आया। दोनों मिलकर बड़े प्रसन्न हुए । चित्तमुनि ने ब्रह्मदत्त को अपने पूर्व जन्म का वृत्तान्त सुनाया, स्वर्ग-नरक के सुख-दुःख बताये और भोगों से विरक्त होने के लिये उपदेश दिया । ब्रह्मदत्त ने मुनि को राज्य ग्रहण करने का प्रलोभन दिया । चित्तमुनि ने ब्रह्मदत्त को कई तरह से समझाया किन्तु पूर्वजन्म के निदान के कारण वह चक्रवर्ती की ऋद्धि नहीं त्याग सका । अन्त में मर कर वह सांतवा नरक में उत्पन्न हुआ।
चित्तमुनि ने शुद्ध सयम का पालन कर घनभाती कर्मों को नष्ट कर केवलज्ञान प्राप्त किया। अन्त में जन्म जरा और मरण से मुक्ति पाकर सिद्धत्व प्राप्त किया ।
इषुकार आदि छ मुनि सागरचन्द्रमुनि के पास चार गोपालों ने दीक्षा ग्रहण की। उनमें दो चित्त ओर सम्भूति बने जिनका वर्णन चित्त और सम्भूति की जीवनी में आगया है । दो मुनियों ने शुद्ध भाव से संयम का पालन किया
और अन्त में समाधि पूर्वक मरकर देवलोक में गये । देवलोक की आय पूरी कर वे क्षितप्रतिष्ठित नगर के एक धनाढ्य श्रेष्ठी के घर जन्मे। दोनों युवा हुए उनकी अन्य चार व्यापारियों के साथ मित्रता हुई। छहों ने एक स्थविर के उपदेश से दीक्षा ग्रहण की। इनमें से चार ने निष्कपट भाव से चारित्र का पालन किया और दो ने कपटपूर्वक । अन्त
* चित्त भौर ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती के बीच जो वार्तालाप हुआ उसके लिये देखिये उत्तराध्ययन सूत्र का तेरहवां अध्ययन । ,