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आगम के अनमोल रत्न
. माकन्दीपुत्र-जिनरक्षित-जिनपालित
चंपा नगरी में माकन्दी नाम का सार्थवाह रहता था। उसकी भद्रा नाम की, भार्या थी। उसके जिनपालित और जिनरक्षित नाम के दो पुत्र थे। ये दोनों पुत्र वड़े साहसी और चतुर थे, उन्होंने लवण समुद्र की ग्यारहबार यात्रा की थी और बहुत सा धन संचित किया था।
एक बार जिनरक्षित और जिनपालित ने सोचा कि फिर से लवण समुद्र की यात्रा कर बहुत सा धन संचित किया जाय । दोनों भाई मिलकर अपने माता पिता के पास गये और अपनी यात्रा का प्रस्ताव उनके सामने रखा । पुत्रों का यह प्रस्ताव माता पिता को पसन्द न आया ।वे बोले-"पुत्र! हमारे पास बाप दादाओं द्वारा उपार्जित सम्पत्ति की कमी नहीं है। तुम बिना कमाये भी आजीवन इसका उपभोग कर सकते हो तो फिर लवण समुद्र की संकटमय यात्रा कर अपने प्राणों को क्यों जोखिम में डालते हो ? लवण समुद्र की यात्रा करके कुशलता 'पूर्वक लौटना कोई आसान काम नहीं, अतएव तुम लोग समुद्र यात्रा का विचार विलकुछ छोड़दो"। परन्तु माकन्दी पुत्रों ने अपने माता 'पिता की बात न मानी और विविध द्रव्यों से अपनी नाव को भरकर वे लवण समुद्र में बारहवीं बार यात्रा के लिए रवाना हुए ।
दोनों भाई जब बहुत दूर निकल गये तो एक दम आकाश में वादल घिर आये और गरजने लगे । विजली कड़कने लगी और जोरों की हवा चलने लगी। देखते देखते नाव डगमगाने लगी, लहरों से टकराकर गेंद की तरह वह ऊपर नीचे उछलने लगी उसके तख्ते टूटटूट कर गिरने लगे, नाव की रस्सियाँ टूट गई पतवारें जाती रही। ध्वजदण्ड नष्ट होगये तथा नावपर काम करने वाले नाविक, कर्णधार तथा व्यापारी लोग घबरा उठे । सर्वत्र हाहाकार मच गया। थोड़ी देर में नाव जल के अन्तर्गत एक पहाड़ी से जाकर टकरा गई और क्षण भर में चकनाचूर होगई। सैकड़ों लोग अपने कीमती माल सामान