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आगम के अनमोल रत्न
के साथ विशाल समुद्र में सदा के लिए विलीन हो गये किन्तु भाकन्दीपुत्र बड़े साहसी और दक्ष थे ऐसे संकट का उन्होंने कई बार सामना किया था । वे उसी क्षण समुद्र में कूद पड़े और जहाज के एक टूटे 'हुए तरंते पर चढ़ गये और उसी के सहारे से समुद्र पर तैरने लगे। 'तैरते तैरते वे समीप के एक द्वीप में पहुँचे । उस द्वीप का नाम था रत्नद्वीप । वह द्वीप बड़ा रमणीय था। नानावृक्षों से सुशोभित अत्यन्त विशाल और मनोहर था । इस द्वीप के बीच एक सुन्दर प्रासाद था, जिसमें अधम और साहसी रत्नद्वीप देवता नाम की देवी रहती थी। 'उस प्रासाद की चारों दिशाओं में चार वनखण्ड थे। वे प्रासाद की शोभा को बढ़ा रहे थे ।।
भाकन्दीपुत्रों ने थोड़ा विश्राम किया और कुछ फलफूल खाकर अपना पेट भरा । उन्होंने नारियल को फोड़कर उसका तेल निकाला
और उसकी शरीर पर मालिश की। उसके बाद माकन्दीपुत्रों ने पुष्करणी में उतर कर स्नान किया और एक शिला पर बैठकर विश्राम करने .लगे एवं बीती हुई बातों को सोचने लगे--माता पिता से झगड़ कर उन्होंने किस प्रकार उनकी 'अनुमति प्राप्त की ? चंपा से कैसे विदा हुए १ समुद्र के बीच का भयंकर तूफान, अपने साथियों का समुद्र में डुबा जाना और असबाव के साथ नाव के नष्ट होने आदि की घटनाओं को याद कर वे अत्यन्त दुःखी होने लगे।
उधर ज्योंही रलद्वीप की देवी को माकन्दीपुत्रों के आने का अवधिज्ञान से पता लगा त्यों ही वह वायुवेग से दौड़ी हुई वहाँ आई
और लाल-लाल आँखे दिखाकर निष्ठुर वचनों से कहने लगी-हे माकन्दीपुत्रो ! अगर तुम्हें अपना जीवन प्रिय है तो. तुम मेरे साथ आकर मेरे महल में रहो और मेरे साथ यथेष्ट कामसुख का उपभोग करो, अन्यथा याद रखना, इस. तीक्ष्ण चमकती हुई नंगी तलवार से तुम्हारे मस्तक को ताइफल की तरह काटकर समुद्र में फेक दूंगी। देवी के क्रोधयुक्त निष्ठुर वचनों को सुनकर दोनों भाई भय से कांपने लगे.