________________
आगम के अनमोल रत्न
४७९
मुनि ने राजा का पूर्व भव सुनाते हुए कहा-राजन्! आज से हजार भव पूर्व स्कन्धककुमार राजकुमार थे । वे एक वार घूमते हुए एक कुएँ के किनारे पर बैठे । उस समय राजकुमार ने काचरे का फल लेकर उसे अत्यन्त कुशलता पूर्वक अखण्ड छाल रख अन्दर का शेष काद लिया था । वह काचरे का फल तुम्हारा ही जीव था । काचरे को छीलकर जो राजकुमार को प्रसन्नता हुई उसी से उसने निकाचित कर्म का बन्धन किया । उसी के परिमाण स्वरूप तुमने अपने वैर का बदला इस रूप में लिया ।
अपने पूर्वभव के वृत्तान्त को सुनकर राजा को भैराग्य उत्पन्न हो गया उसने अपने को पुत्र राज्य देकर रानी सुनन्दा के साथ दीक्षा धारण कर ली और आत्म कल्याण किया ।
मुनि के साथ रहने वाले गुप्तचरों को जर मुनि के खाल उतार कर मारे जाने का समाचार मिला तो वे बड़े दुःखी हुए और विलाप करते हुए काचीपुर पहुँचे । उन्होंने मुनि के मारे जाने का समाचार राजा को सुनाया । मुनि के मरने का वृत्तान्त सुन उसके माता पिता को बड़ा दुख हुभा। उन्होंने भी संसार को भसार समझ कर दीक्षा ली को और आत्मकल्याण किया ।
मुनि आईककुमार ___ आर्द्रपुर नगर में आर्द्र नाम का राजा राज्य करता था उसकी रानी का नाम आर्द्रा था । उसके आर्द्रक नाम का पुत्र था। एक बार राजगृहके राजा श्रेणिक ने व्यापारियों के साथ आई राजा को मैत्री सूचक उपहार भेजा । उपहार को देख भाईक कुमार ने भी राजा श्रेणिक के पुत्र अभय कुमार को एक पत्र और बहुमूल्य उपहार मेजा। अभयकुमार ने भी प्रत्युत्तर में जैन मुनियों की वेषभूषा का उपहार भेजा । मुनियों को वेषभूषा देखकर आर्द्रकुमार को अपने पूर्वभव का स्मरण हो आया ।