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आगम के अनमोल रत्न
बाद चंड प्रद्योत हार गया दुम्मुह राजा ने उसे कैद कर लिया । कुछ समय के बाद द्विमुख ने अपनी पुत्रो मदनमंजरी का विवाह प्रद्योत. के साथ कर उसे सम्मान पूर्वक मुक कर दिया ।
किसी समय इन्द्रकेतु महोत्सव के अवसर पर राजा ने एक स्तम्भ खड़ा किया । उसे विविध वस्त्रों और पताकाओं से सुसज्जित किया । सात दिन तक लगातार इन्द्रकेतु स्तम्भ का गीत नृत्य आदि से खूब सम्मान किया । उत्सव की समाप्ति पर स्तम्भ नीचे गिरा दिया गया। अब वह स्तम्भ मिट्टी में पड़ा था। बच्चे स्तम्भपर बैठकर पेशाब टट्टी. करते थे । राजा किसी समय उसी रास्ते से निकला । उसने मलमूत्र से भरे हुए स्तम्भ को देखा । राजा को विचार आया--"इस स्तम्भ की तरह ही यह जीवन है।" राजा को सारा संसार असार लगने लगा । उसने अपने पुत्र को राज्य देकर प्रव्रज्या ले ली ।
द्विमुख ने प्रत्येकबुद्ध बन विहार करते-करते क्षितिप्रतिष्ठित नगर के चर्तुद्वार वाले यक्ष मन्दिर में दक्षिण द्वार से प्रवेश किया । प्रत्येक बुद्ध करकण्डू ने पूर्वद्वार से, नमिराजर्षि ने पश्चिम द्वार से और नग्गई (नग्गति) ने उत्तर द्वार से प्रवेश किया । · चारों प्रत्येक बुद्ध एक स्थान पर एकत्र होगये और धार्मिक वार्तालाप करने लगे । करकण्डु को बचपन से ही खुजली आती थी इसलिये उसने खुजलाने के लिये अपने पास एक शलाका रख छोड़ी थी। द्विमुख ने यह देख लिया और करकण्डू से बोला-"जिसने राज्य, राष्ट्र अन्त.पुर आदि का त्याग कर दिया हो, क्या उसे शलाका का पास में रखना उचित है ?" करकण्डू ने इस बात का कोई जवाव नहीं दिया परन्तु नमिराजर्षि से -रहा नहीं गया । उसने उत्तर में कहा-"जब
आप राजा थे तब दोषों को देखने के लिये अपने अधिकारी नियुक्त किये थे परन्तु अब जब आपने सर्वसंग का त्याग किया है तो आपको किसो का दोष देखने का क्या अधिकार है ?" इस पर तीसरे प्रत्येक बुद्ध नगई ने कहा-"केवल मोक्ष की ही इच्छा करने वाले नमि को