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आगम के अनमोल रत्न
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• छ महिने की कठोर साधना के बाद कपिल मुनि ने केवलज्ञान प्राप्त कर लिया । वे स्वयं बुद्ध केवली बने ।
एक वार श्रावस्ती के अन्तराल में बसने वाले ५०० चोरों को प्रतिबोध देने के लिए उन्होंने चोरपल्ली की ओर विहार कर दिया । वे चोर-पल्ली में पहुँचे । चोरों ने कपिल केवली को घेर लिया और उन्हें त्रास पहुँचाने लगे । चोरों के सरदार का नाम बलभद्र था । उसने कपिल केवली से कहा-"क्या तुम नाचना जानते हो ?"कपिल ने कहा-"नृत्य तो हम नहीं करते ।' "तो गीत गाना जानते हो?' वलभद्र ने पूछा । कपिल मुनि ने कहा-"हाँ । चोरों ने कहा-"तो गाओ" । चोरों को प्रतिबोध देने के लिये मुनि उत्तराध्ययन सूत्र के भाठवें अध्ययन को द्रुपद राग में गाने लगे । गाथाओं के भावों को सुन कर ५०० चोरों को वैराग्य उत्पन्न हो गया । इन चोरों ने कपिल केवली से दीक्षा ग्रहण की और केवलज्ञान प्राप्त कर मोक्ष में गये । कपिल केवली ने भी निर्वाण प्राप्त किया ।
चार प्रत्येक बुद्ध
१. नमिराजर्षि मालवदेश में सुदर्शन नाम का नगर था। वहाँ मणिरथ नाम का राजा राज्य करता था। उसके लघुभ्राता का नाम युगवाहु था । वह युवराज पद से विभूषित था । युगवाहु की पत्नी का नाम मदनरेखा था । वह अनुपम सुन्दरी थी और जिनधर्म में अत्यन्त श्रद्धाशील थी। उसके चन्दयश नाम का एक पुत्र था।
एक बार उसने चन्द्रका स्वप्न देखा । स्वप्न देखकर वह जागृत हुई । उसने पति से स्वप्न का फल पूछा। पति ने कहा-"प्रिये ! तुम चन्द्रमा के समान दिव्य प्रभा वाले पुत्र को जन्म दोगी ।" युवराज्ञी गर्भवती हुई । वह अपने गर्भ का प्रयत्नपूर्वक पालन करने लगी ।