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आगम के अनमोल रत्न
उसने पूर्वभव को देखा-'मैं पूर्वभव में वसन्तपुर नगर में सामायिक नामक प्रहस्थ था । मेरी पत्नी का नाम बन्धुमती था । हम दोनों ने दीक्षा ली । अलग अलग विहार किया । पुनः एक दिन हम दोनों एक ही नगर में आये । भिक्षा के समय परिभ्रमण करते हुए मुझे साध्वी वन्धुमती दिखाई दी। मेरे मन में उसके प्रति आसकिभाव जागृत हुआ । यह बन्धुमती को मालूम हो गया। उसने अपने संयम की रक्षा करते हुए संथारा कर देह त्याग दिया । वह मरकर आठवें देवलोक में गई । जब मुझे मालम हुआ तो मैंने भी भक्त प्रत्याख्यान कर समाधि पूर्वक देह छोड़ा और मरकर देव बना । देवलोकसे च्युत होकर मैं आर्द्र राजा का पुत्र बना हूँ। मेरी पत्नी. वन्धुमती वसन्तपुर के श्रेष्ठी की श्रीमती नाम की पुत्री बनी है।'
इस प्रकार पूर्वभव का वृत्तान्त जान उसने प्रव्रज्या लेने का निश्चय किया । पिता से आज्ञा मांगी। पिता ने जब आज्ञा न दी तो वह चुपचाप मुनिवेष पहनकर निकल गया । राजा को जब इस बात का पता चला तो उसने उसकी सुरक्षा के लिये पांचसौ सुभटों: को भेज दिया । वे सुभट गुप्त वेश में भाईक मुनि के साथ साथ घूमने लगे। ___आईक मुनि चलते चलते बसन्तपुर आये और एक यक्षमन्दिर में ध्यान करने लगे। उस अवसर पर श्रीमती अपनी सहेलियों के के साथ यक्षमन्दिर में आई और खेल खेलने लगी । खेल खेलते खेलते श्रीमती ने आर्द्रकमुनि को थम्भा समझकर पकड़ लिया । अब उसे स्थंभ के. स्थान पर पुरुष होने का पता लगा तो उसने सचमुच ही इसी पुरुष के साथ विवाह करने का निश्चय किया । श्रेष्ठी के समझाने पर आर्द्रक कुमार कन्या के साथ विवाह कर वहीं रहने लगे । बारह वर्ष रहने के बाद पुनः -प्रवज्या लेने के लिये- चल पड़े किन्तु पुत्रस्नेह ने उन्हें पुनः बारह वर्ष रोक दिया । इस प्रकार