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आगम के अनमोल रत्न
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नगर को भस्म कर दिया । ४९९ मुनियों ने समता भाव से मोक्ष प्राप्त किया ।
(२) स्कन्धकमुनि श्रावस्ती नगरी में कनककेतु नामक राजा राज्य करता था । उसकी रानी का नाम मलयसुन्दरी और पुत्र का नाम स्कन्धक कुमार तथा पुत्री का नाम सुनन्दा था । सुनन्दा का विवाह कांचीनगर के राजा पुरुषसिंह के साथ हुमा था। स्कन्धक कुमार अपने गुणों से राजा प्रजा और कुटुम्वीजनों को अत्यन्त प्रिय था।
एक समय विजयसेन नाम के आचार्य का आगमन हुआ । उनका उपदेश सुनकर स्कन्धककुमार को वैराग्य उत्पन्न हो गया। उसने अपने माता पिता की आज्ञा प्राप्त कर आचार्य के पास दीक्षा ले ली। 'मेरे संयमी पुत्र को कोई कष्ट न दे इस उद्देश्य से राजा ने अनेक सुभटों को गुप्त रूप से उसके साथ कर दिया ।' स्कन्धकमुनि गुरु के पास रहकर शास्त्र का अध्ययन करने लगे । ये बड़े मेधावी थे अतः अल्प समय में ही गीतार्थ हो गये । गुरु की आज्ञा प्राप्त कर भव ये एकाकी विचरने लगे।
विहार करते हुए वे कांचीपुर नगर पधारे । वहाँ इनकी वहन रहती थी। दिन के तृतीय पहर में मुनि आहार के लिये निकले। वे परिभ्रमण करते करते राजमहल के पास से जा रहे थे। उस समय महारानी 'सुनन्दा' और महाराज 'पुरुषसिंह ' गवाक्ष में बैठे हुए नगर निरीक्षण कर रहे थे । महारानी सुनन्दा की दृष्टि आहार के लिये परिभ्रमण करते. स्कन्धक मुनि पर पड़ी । मुनि को देखकर वह सोचने लगी-"मेरा भाई भी इसी प्रकार इतने उष्ण ताप में भिक्षा के लिए घर घर परिभ्रमण करता होगा।" इस विचार से वह अनिमेष दृष्टि से मुनि की ओर देखने लगी। तप से मुनि का शरीर कृश हो गया था। अतः सुनन्दा अपने भाई को न पहचान सकी । वह मुनि को देखते