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आगम के अनमोल रत्न का अध्ययन किया और बीस बीस वर्ष तक चारित्र का पालन कर एक मास के संथारे के साथ शत्रुजय पर्वत पर सिद्धपद प्राप्त किया ।
दारुक कुमार और अनादृष्टि का भी सारा वर्णन सुमुखकुमार के समान ही जानना चाहिये । केवल इतना अन्तर है कि ये दोनों कुमार सहोदर भाई थे। इनके पिता का नाम वसुदेव और माता का नाम धारिणी था । दीक्षा लेकर ये भी मोक्ष में गये । जालि मयालीआदिकुमार- . . .
कृष्ण वासुदेव की द्वारिका नगरी में वसुदेव राजा रहते थे । उनकी रानी का नाम धारिणी था । महारानी धारिणी ने सिंह का स्वप्न देखकर दारुक जालि, मयालि, उवयाली, पुरुषसेन, और वारिसेन नामक पुण्यवान पुत्रों को जन्म दिया। युवावस्था में इनका पचास-पचास सुन्दर राजकन्याओं के साथ विवाह हुआ। उन्हें श्वसुर पक्ष की भोर से पचास पचास करोड़ दहेज मिला ।
एक समय भगवान अरिष्टनेमि वहाँ पधारे। उनकी वाणी सुनकर उपरोक कुमारों को वैराग्य उत्पन्न हो गया । माता पिता की आज्ञा लेकर इन कुमारों ने भगवान के पास दीक्षा ग्रहण की।
दीक्षा लेकर इन्होंने बारह अंगसूत्रों का अध्ययन किया । इनमें दारुककुमार ने चौदह पूर्व का अध्ययन किया भौर बीस वर्ष पर्यन्त संयम का पालन किया और अन्त में एक मास :का संथारा करके शत्रुजय पर्वत पर सिद्ध पद प्राप्त किया । शेष जालि आदिकुमारों ने सोलह वर्ष संयम पालन कर एक मास का संथारा लेकर शत्रुजय पर्वत पर जाकर मोक्ष प्राप्त किया ।
. प्रद्युम्न शाम्ब आदि कुमार
प्रद्युम्नकुमार कृष्ण वासुदेव के पुत्र थे । इनकी माता का नाम रुविमणी था । ये द्वारिका रहते थे।
शाम्बकुमार भी कृष्णवसुदेव के ही पुत्र थे किन्तु इनकी माताः का नाम जाम्बवती था। .