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आगम के अनमोल रत्न
धन्य सार्थवाह राजगृह नगर में धन्य नाम का एक धनवान सार्थवाह रहता था। उसकी पत्नी का नाम भद्रा था। भद्रा ने सुघुमा नाम की अत्यन्त रूपवती कन्या को एवं धन, धनपाल, धनदेव धनगोप और धनरक्षित नाम के पुत्रों को जन्म दिया ।
धन्य के चिलात नाम का एक सुन्दर और हष्ट-पुष्ट नौकर (दासचेट) था, जो बच्चों के खिलाने में बड़ा कुशल था। भद्रा अपनी लाइली पुत्री सुषुमा को नहलाती, धुलाती, नजर से बचाने के लिए भसि आदि का टीका करती और अलंकार भाभूषण आदि से सजाकर उसे चिलात को सौंप देती।
चिलात भी प्रतिदिन सुषमा को अपनी गोद में उठाकर खिलाने के लिये ले जाता था। सुषुमा को वह खूब प्यार करता था किन्तु साथ खेलनेवाले दूसरे बच्चों को वह अनेक प्रकार से काट देता था। वह किसी बालक का गेंद चुरा लेता था तो किसी वालक की कौड़ियां । किसी के पास से खाने की चीज छीन लेता था तो किसी के गहने निकाल लेता था। किसी को वह खून पीटता था । चिलात के इस व्यवहार से तग आकर लड़के और लड़कियां अपने मां बाप के पास पहुँचते और उसकी शिकायत करते थे । लड़के और लड़कियों के मी वाप धन्य के पास पहुँचते और चिलात के उद्दण्ड व्यवहार की शिकायत करते। धन्य चिलात को बार-बार समझाता किन्तु चिलांत अपने स्वभाव को नहीं बदलता था। एक दिन धन्य ने क्रुद्ध होकर चिलात को अपने घर से निकाल दिया। .
घर से निकाले जाने पर वह चिलात राजगृह के गली-कूचों में, जुआरियों के भट्ठों में, वेश्याओं के घरों में तथा मद्यपान-गृहों में स्वच्छन्द होकर धूमने लगा। भव उसे कोई टोकने वाला नहीं था। वह