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आगम के अनमोल रत्न
से सत्कार किया और उन्हें विदा कर दिया । विवाह के पश्चात् तेतलीपुत्र पोटिला के साथ सुख पूर्वक रहने लगा।
कनकरथ राजा राज्य में भत्यन्त आसक्त एवं गृद्ध होने के कारण अपने उत्पन्न होनेवाले सब पुत्रों के अंगों को विकृत करके उनको राज्यपद के अयोग्य बना देता था। इस बात से रानी अत्यन्त दुःखित थी।
एक बार मध्यरात्रि के समय पद्मावती देवी को इस प्रकार अध्यवसाय हुआ-"सचमुच कनकरथ राजा राज्य में आसक्त हो गया है और उसकी आसक्ति इतनी अधिक हो गई है कि वह अपने पुत्रों को विकलांग बना डालता है। अगर यही स्थिति रही तो राज्य का भावी अंधकारमया हो जायगा । अतः राज्य की भावी सुरक्षा की दृष्टि से उत्तराधिकारी की अवश्यकता है । अब मुझे जो पुत्र होगा उसे कनकरथ राजा से छिपाकर उसका रक्षण करना होगा।" ऐसा विचार कर उसने तेतलीपुन असात्य को बुलाया और कहा--हे देवानुप्रिय ! यदि मुझे पुत्र हो तो उसे कनकरथ राजा से छिपाकर उसका लालन पालन करो । जब तक वह बाल्यावस्था पार कर यौवन न प्राप्त करले तब तक आप उसका पालन पोषण करें । तेतलीपुत्र ने रानी की बात स्वीकार कर ली।
इसके बाद पद्मावती देवी ने तथा पोट्टिला अमात्यी ने एक ही साथ गर्भ धारण किया । नौ मास 'और साढ़े सात दिन पूर्ण होने पर पद्मावती ने एक सुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया । जिस रात्रि में पद्मावती ने पुत्र को जन्म दिया, उसी रात्रि में पोट्टिला अमात्य पत्नी ने एक मरी हुई बालिका को जन्म दिया । '' 'पद्मावती ने उसी समय धायमाता के द्वारा तेतलीपुत्र को बुलाया । तेतलीपुत्र गुप्त मार्ग से महारानी के पास पहुँचा । महरानी ने अपने नवजात शिशु को मंत्री के हाथों में सौंप दिया । तेतलीपुत्र उस बच्चे को लेकर घर आया तथा सारी बाते अपनी पत्नी को समझाकर उसने बच्चे का लालन पालन करने के लिये उसे सौंप दिया और अपनी मृत पुत्री को रानी पद्मावती को दे आया ।