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आगम के अनमोल रत्न
वहाँ से च्युत होकर मैं तेतलीपुर नगर में तेतली नामक अमात्य की भद्रा नाम की पत्नी को कुक्षि से उत्पन्न हुआ । अब मुझे चारित्र ग्रहण करना ही उचित है ।
उसने पूर्व जन्म में स्वीकार किये गये महाव्रतों को पुनः स्वीकार कर लिया । प्रमदवन में अशोक वृक्ष के नीचे पृथ्वीशीला पट्टक पर रहते हुए उसे चौदह पूर्वं स्मरण आ गये तथा घनघाती कर्मों को खपाकर वह केवली हो गया । देवों ने केवली का उत्सव किया ।
उधर कनकध्वन राजा को विचार हुआ कि मैने तेतलीपुत्र का बड़ा अनादर किया । अतः वह क्षमा याचना मांगने तेतलीपुत्र केवली के पास गया | तेलीपुत्र ने धर्मोपदेश दिया और राजा ने श्रावक धर्म स्वीकार कर लिया । अन्त में तेतलीपुत्र ने सिद्धि प्राप्त कर ली । दशार्णभद्र
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दशार्ण देश में दशार्णपुर नाम का नगर था । नगर के समीप दशार्णकूट नाम का उद्यान था । वहाँ दशार्णभद्र नाम के समृद्धिशाली राजा राज्य करते थे । इनकी रानी का नाम मंगलावती था । दशार्णभद्र अपने समय का एक शक्तिशाली राजा था ।
एक बार भगवान महावीर दशार्णपुर के बाहर नन्दनवन में पधारे । उद्यान पालक ने भगवान महावीर के आगमन को सूचना राजा को दी | उद्यान पालक से भगवान की बात सुनकर दशार्णभद्र बड़ा प्रसन्न हुआ । उसने भगवान को भाव चन्दन कर अपने सभासदों से कहा--" कल प्रातः मैं भगवान के दर्शन के लिये बढ़े वैभव के साथ जाना चाहता हूँ । आप लोग सब यहाँ उपस्थित हों ।" उपस्थित सभासदों ने
राजसी ठाठ के साथ कल राजाज्ञा स्वीकार की । सभा भवन से निकल कर राजा अन्तःपुर में गया । अपनी रानियों से भी प्रभु की वन्दना करने की बात कही । राजा सारी रात प्रातः काल के आयोजन की चिन्ता में पड़ा रहा । प्रातः होते ही उसने नगर अध्यक्ष को समस्त नगर सजाने की आज्ञा दी ।