________________
आगम के अनमोल रत्न
४५३
तेतलीपुत्र ने घर लौटकर अपने नोकरों को बुलाया और उन्हें 'पुत्र के जन्म के उपलक्ष में सारे नगर में उत्सव मनाने का आदेश दिया । जेलखानों से बन्दी जनों को मुक्त किया और याचक जनों को खूब दान दिया । दस दिन तक पुत्र जन्म के उपलक्ष में उत्सव मनाया गया। ग्यारवें दिन अपने मित्र ज्ञातिजनों के बीच तेतलीपुत्र ने कहा-कनकरथ राजा के राज्य में मुझे पुत्र हुआ है अतः इसका नाम कनकध्वज होगा। सबने यह बात स्वीकार कर ली । अव कनकध्वज राजोचित ढंग से अपना वाल्यकाल व्यतीत करने लगा।
इधर एक दासी ने महाराज कनकरथ से निवेदन किया कि महारानी पद्मावती ने एक मृत बालिका को जन्म दिया है । महाराज मन ही मन में प्रसन्न हुए। उन्होंने मृतवालिका का नौहरण किया और स्मशान में उसे दफना दिया। कुछ समय के बाद राजा शोक रहित हो गया ।
कनकध्वज कुमार ने कलाचार्य के पास रहकर समस्त कलाएँ सीख ली । वह युवा हो गया ।
कुछ काल के बाद तेतलीपुत्र अमात्य का पोटिला पर से स्नेह हट गया । यहाँ तक कि पोट्टिला का नाम, गोत्र भी सुनना उसे अच्छा नहीं लगता था । पति के औदासिन्य से वह अत्यन्त चिन्तामग्न रहने लगी।
एक दिन पोहिला को शोक संतप्त देखकर तेतलीपुत्र ने उसे कहा-प्रिये । खेद मत करो । मेरी भोजनशाला में विपुल मात्रा में भोजन तैयार करावो और उसे श्रमण ब्राह्मणों को दो । भिक्षु आदि को दान देने से तुम्हारा शोक संतप्त हृदय कुछ शान्त बनेगा।
___ पति की आज्ञा पाकर वह दान शाला में विपुल मात्रा में भोजन बनाने लगी और प्रतिदिन दान में देने लगी । सैकड़ों भिक्षुगण उनकी दान शाला में आकर भिक्षा ग्रहण करने लगे।