________________
आगम के अनमोल रत्न
સ
इस पर सुबुद्धि ने कहा- स्वामी ! इसमें क्या नवीनता थी । यह तो पुद्गलों का स्वभाव ठहरा । जो पुद्गल इस समय वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से अच्छे लगते हैं वे ही पुद्गल कुछ समय के बाद वुरे लगने लगते हैं । जो आवाज हमें एक समय कर्णप्रिय लगती है वही आवाज दूसरे समय कर्णकटु प्रतीत होने लगती है एवं जो पदार्थ इस समय स्वादिष्ट और रुचकर लगते हैं वे ही दूसरे समय अरुचिकर लगने लगते हैं । अतः अमुक पदार्थों के अच्छे या बुरे स्वाभाव में आश्चर्य करने जैसा क्या है !
कई वार अच्छी चीजें भी संयोगवश विगड़ जाती हैं और चिगड़ी हुई कई चीजें अच्छी भी हो जाती हैं । यह तो मात्र परभाणुओं के स्वभाव और संयोग को विचित्रता ही है ।
सुबुद्धि की यह बात राजा के गले नहीं उतरी । राजा मौन
रहा ।
एक बार जितशत्रु राजा सुबुद्धि मन्त्री के साथ घोड़े पर बैठ कर बड़े परिवार के साथ नगर के बाहर गन्दे पानी से भरी खाई के पास से घूमने के लिये निकला । पानी की असह्य दुर्गन्ध से 'राजा ने अपनी नाक को वस्त्र से ढँक लिया । कुछ आगे वढ़ जाने के बाद राजा ने अपने साथियों से कहा- यह पानी कितना गंदा है ? सड़े हुए शव से भी इसकी दुर्गन्ध भयानक है । राजा के इस कथन का सुबुद्धि के सिवाय सब ने समर्थन किया किन्तु सुबुद्धि मौन रहा । सुबुद्धि को मौन देखकर राजा सुबुद्धि से बोला- मंत्री 1 तुम मौन क्यों हो ? क्या मेरा यह कथन समर्थन के योग्य नहीं है ?
सुबुद्धि विनीत भाव से बोला- स्वामी ! इसमें समर्थन करने जैसी क्या बात थी । यह तो वस्तु का स्वभाव है, कि उसमें परिणमन होता ही रहता है । जो जो 'वस्तुएँ वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से अच्छी नहीं हैं वह कल उपाय से अच्छी भी बन सकती हैं ।" राजा ने यह सुनकर फिर कहा