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आगम के अनमोल रत्न
राजा अत्यन्त प्रसन्न हुआ और बोला-यह पानी बड़ा शीतल है, मधुर है और सुगन्धित है । राजा जल की खूब प्रशंसा करने लगा। वस्तुतः मैं तो इसे उदकरत्न ही कहता हूँ।" राजा की इस बात का अन्य जन भी समर्थन करने लगे और वे राजा की ही में हो मिलाते हुए जल की प्रशंसा करने लगे । राजा ने कहा- यह पानी कहाँ से आया है ? कौन ले के आया है ? सेवक ने नम्रभाव से कहास्वामी ! यह पानी अमात्य सुवुद्धि ने आपके लिये ही भेजा है। .
सुबुद्धि मंत्री को बुलाकर जितशत्रु रामा ने पूछा-इतना शीतल और मधुर एवं सुगन्धित जल कहाँ से आया ? सुवृद्धि ने जवाब दियास्वामी ! यह पानी उसी गन्दी खाई का है। राजा भाश्चर्य चकित होकर चोला--क्या सचमुच यह पानी उसी गन्दी खाई का है । मन्त्री ने जवाब दिया"हाँ राजन् । यह पानी उसी गन्दी खाई का है। प्रयोग करके मैने इसको इतना श्रेष्ठ और सुगन्धित बनाया है।" राजा को मन्त्री की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ । उसने स्वयं भी उसी प्रक्रिया से जल का शोधन करके देखा तो अमात्य की बात सच निकली । अब उसे अमात्य की 'वस्तु मात्र परिणमन शील है' इस बात पर सम्पूर्ण विश्वास हो गया।
जितशत्रु ने ममात्य से पूछा--सुबुद्धि । तुमने यह सत्य सिद्धान्त किससे सीखा ?
मन्त्री ने कहा--स्वामी ! जिन भगवान के वचन से ही मै इस सत्य सिद्धान्त को समझ सका हूँ । इसीलिये स्वामी ! मैं अच्छी वस्तु को देखकर कभी फूलता नहीं और बुरी वस्तु से कभी घबराता नहीं। वस्तु के पर्याय का यथार्थ भान हो जाने से मनुष्य प्रत्येक भवस्था में अपने समभाव को स्थिर रख सकता है। उसकी पदार्थ के प्रति भासक्ति नहीं बढ़ती ।.