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आगम के अनमोल रत्न
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थे । पहले वाले पहली ही बार आये हैं तीसरी वार' नहीं । वैसे हम छहों सहोदर भाई हैं । भद्दिलपुर नगर के नाग गाथापति हमारे पिता हैं और सुलसा हमारी माता है। हम छहों ने भगवान अरिष्टनेमि के समीप दीक्षा ग्रहण की है। आज हम सभी मुनियों के बेले का पारणा था। इसलिए आहार के लिए दो दो संघाडों में निकले हैं । संयोगवशात् आप ही के घर में छहों मुनियों का आगमन हो जाने से आप को ऐसा भ्रम हो गया है।"
मुनियों से समाधान पाकर महारानी ने उन्हें वन्दन किया और सात आठ कदम साथ चलकर मुनियों को विदा किया ।
मुनियों के चले जाने पर देवकी सोचने लगी
"जब मैं छोटी थी तब पोलासपुर नगर में अतिमुक्तक श्रमण ने मुझ से कहा था-'देवकी, तुम नल कुबेर जैसे सुन्दर कान्त और समान रूप और भाकृति वाले आठ पुत्रों को जन्म दोगी। भरतक्षेत्र में अन्य किसी माता को इतने सुन्दर पुत्रों को जन्म देने का सौभाग्य नहीं मिलेगा ।' किन्तु मैं प्रत्यक्ष देख रही हूँ कि भरतक्षेत्र में समान रूप भाकृति वाले पुत्रों को जन्म देने वाली अन्य भी मातायें मौजूद हैं । तो क्या मुनि की वह वाणी मिथ्या थी ? मुझे भगवान के समीप पहुँचकर यह सन्देह दूर करना चाहिये। ऐसा सोचकर उसने अपने सेवकों को धार्मिक रथ तैयार करने का आदेश दिया। सेवकों ने तुरंत धार्मिक रथ को सजाकर उसके सामने उपस्थित किया । महारानी रथ पर बैठ गई और अरिष्टनेमि भगवान के पास पहुँचकर उनकी पर्युपासना करने लगी।
भगवान ज्ञानी थे । वे देवकी के भागमन का कारण समझ * गये। वे बोले--"देवकी ! तुम अतिमुक्तक अनगार की भविष्य वाणी
के विषय में शंकाशील हो उसका समाधान पाने के लिये ही यहाँ उपस्थित हुई हो न !"